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गद्य-पद्य काव्य
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अनुभूति में विलीन हो जाती है ।
। प्रस्तुत गद्य-काव्य की कृति में कवि ने तुकों से निरपेक्ष रहकर अपनी अनुभूति को सहज-सरल शब्दों में अभिव्यक्ति दी है। काव्य की प्रत्येक पंक्ति पाठक को सोचने-विचारने के लिए प्रेरित करती है और अनायास ही उसके जीवन की गुत्थी को सुलझा देती है ।
बन्दी शब्द : मुक्त भाव
कल्पना और अनुभूति के माध्यम से किसी कथानक, चरित्र या विचार की गद्य में सरस, रोचक और रमणीय अभिव्यक्ति गद्य काव्य है। यह साधारण गद्य की अपेक्षा अधिक अलंकृत, प्रवाहपूर्ण तथा माधुर्यमंडित रचना होती है । 'बंदी शब्द : मुक्त भाव' ऐसी ही गद्यकाव्य की रचना है। इसमें छंदहीन कविताओं का समावेश है जिन्हें गद्य काव्य नहीं, किंतु छंदमुक्त काव्य कहा जा सकता है।
___ शब्द आकार पाकर बंदी बन जाते हैं। वे भावों की तरह मुक्त नही हैं, इसीलिए वे भावों की अभिव्यंजना में वैशाखी के सहारे चलने वाले पंगु की भांति हैं । वे भावों का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते ।
इसमें समय-समय पर अंकित विचारों का संकलन है । वे विचार वेधक और प्रेरक हैं । पुस्तक का प्रारंभ ही इन शब्दों में होता है- तुम बैठे क्यों हो ? लो, पवन तुम्हारे लिए नया संदेश लाया है कि जो चलता है वह पहुंच जाता है। इसी प्रकार मानव की तृष्णा को प्रतीक के माध्यम से कितने सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है.--.
तारे ऊपर हैं वे नीचे आना चाहते हैं और पेड़ जो नीचे हैं वे ऊपर जाना चाहते हैं । संतोष ऊपर भी नहीं,
नीचे भी नहीं है। इस प्रकार इसका प्रत्येक पृष्ठ एक नई प्रेरणा और नया भार्ग-दर्शन देता है।
भाव और अनुभाव
काव्य को परिभाषित करते हुए लेखक कहते हैं- 'चेतना के महासिंधु में पवन का प्रवेश और उत्ताल ऊमिमाला का उच्छलन-~यही है काव्य की
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