________________
अनुभव : चिन्तन : मनन
इसमें समय-समय पर लिखे गए अनुभूतिपरक गद्य काव्य हैं जो पाठक के हृदय को बींधकर उसको सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। इसकी महत्ता हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में इस प्रकार है- 'मुनिश्री (युवाचार्य महाप्रज्ञ) ने छोटे-छोटे गीतों में बहुत ही प्रेरणादायक अनुभव और चिंतन का प्रकाश भर दिया है। उन्होंने स्वच्छ संवेदनशील चित्त से प्राकृतिक व्यापारों को देखा है
और उससे बहुमूल्य निष्कर्षों पर पहुंचे हैं। मुनिश्री ने प्रस्तुत कृति में जिस शब्दावली का प्रयोग किया है वह सरल और प्रेषणधर्मी है ।'
लेखक अनुभव, चिन्तन, मनन- इन तीनों शब्दों की व्याख्या करते हुए लिखते हैं... 'अनुभव है योग और वियोग की कहानी। मन संवेदना से जितना भरा होता है, अनुभूति उतनी ही तीव्र होती है। चिन्तन है - जीवन की गहराई का प्रतिबिम्ब और दुश्चिन्ता है--- जीवन-संपदा की अन्त्येष्टि । अनुभूति में विवेचन नहीं होता, चिन्तन में गति नहीं होती। अनुभूति का परिपाक विवेक में होता है और विवेक का परिपाक होता है मनन में । मनन है--ज्ञान और आचरण का समीकरण ।'
प्रस्तुत लघु कृति प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव, चिन्तन और मनन के लिए प्रेरित करती है और यही कथनी-करनी को मिटाने का एकमात्र उपाय
गूंजते स्वर : बहरे कान शब्द की प्रकृति है गूंजना । बाह्य जगत् में शब्द ही एक ऐसा सहारा है जो कानों में पड़कर अवबोध देता है, आदमी को झकझोरता है। शब्द की शक्ति अपार है। वह अर्थ भी घटित कर सकता है और अनर्थ भी घटित कर सकता है । संदर्भहीन शब्द अनर्थ घटित कर देता है और संदर्भयुक्त शब्द अर्थ का वाचक बन जाता है। शब्द निराकार है, उसका कोई आकार नहीं होता, अर्थ नहीं होता। उसको आकार दिया जाता है। उसमें अर्थ आरोपित किया जाता है।
प्रस्तुत कृति में वे शब्द-संयोग संकलित हैं जो व्यक्ति को सुनने-समझने के लिए बाध्य करते हैं । लेखक का अभिप्राय है .. परिस्थितियों, घटनाओं और भावों की यथार्थता जब उपयुक्त शब्दों से अभिव्यक्त होती है, तब अनुभूति का धरातल सम हो जाता है-एक हृदय की अनुभूति अगणित हृदयों की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org