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५. गद्य-पद्य काव्य
प्रस्तुत खंड में गद्य-पद्य काव्य से सम्बंधित है पूस्तकों का परिचय है। काव्य-निर्माण की शक्ति नैसर्गिक भी होती है और अभ्यासजनित भी। युवाचार्यश्री नैसर्गिक काव्यशक्ति के धनी हैं। काव्य-रचना के विषय में वे कहते हैं- 'कविता मेरे जीवन का प्रधान विषय नहीं है। मैंने इसे सहचरी का गौरव नहीं दिया। मुझे इससे अनुचरी का-सा समर्पण मिला है। मैंने कविता का आलंबन तब लिया, जब चितन का विषय बदलना चाहा। मैंने कविता का आलंबन तब लिया जब दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाते-सुलझाते थकान का अनुभव किया।
गद्य-पद्य काव्य की इन कृतियों में अभिव्यंजित विचारों से सहस्रशः व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं और आज भी उन विचारों में इतनी सद्यस्कता है कि वे आज की समस्याओं से आक्रांत व्यक्ति को समाधान देकर आश्वस्त कर सकते हैं।
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