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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण दोनों की सार्थकता नहीं होती । केवल तर्क के लिए तर्क-इस भूमिका में समाधान संभव नहीं बनता । वह जिज्ञासा की भूमिका में ही संभव बनता है। प्रारम्भ से ही आचार्यश्री तुलसी ने मुझे अवसर दिया कि जिज्ञासा आए और उसका मैं समाधान दूं । फलतः समाधान देना एक निसर्ग बन गया। अनेकांत का सिद्धांत और उसकी भाषा-शैली- ये दोनों मुझे प्रिय रहे हैं। समाधान में उनका अधिकतम प्रयोग हुआ है।'
प्रस्तुत पुस्तक बिखरे हुए प्रश्नों और जिज्ञासाओं तथा उनके समाधानों का संकलन है । उन सबका विषयगत विभाजन तीन शीर्षकों में किया है-- १. योग और ध्यान २. समाज और राष्ट्र ३. दर्शन और सिद्धांत । कहीं-कहीं एक ही विषय से सम्बन्धित प्रश्नों की पुनरावृत्ति भी हुई है, किंतु उनके समाधान में नवीनता है, अतः उनका भी समावेश है। इस प्रकार पुस्तक के अंतर्गत शताधिक प्रश्न हैं और उनका वर्तमान के वैज्ञानिक परिवेश में समाधान प्रस्तुत है।
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