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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
चिन्तन-मंथन के क्षेत्र में बहुत मान्य हो गई है। इससे श्रोता और पाठक की रुचि का संवर्धन भी होता है । सोच-विचार कर योजनाबद्ध जो लिखा जाता है, अथवा बोला जाता है उसमें अनुभूति की अपेक्षा बौद्धिकता अधिक झलकती है । जो भाव सहज प्रस्फुटित होता है, सहज अभिव्यक्त होता है, वह बुद्धि की अपेक्षा अनुभूति से अधिक जुड़ा होता है।'
साक्षात्कार में विषयों की एकरूपता तथा भाषा की समानता नहीं रह सकती। प्रत्येक साक्षात्कर्ता की जिज्ञासा भिन्न होती है, अवसर भिन्न होता है और उसी प्रकार समाधान भी भिन्न होता है।
प्रस्तुत संकलन में मुनियों, संपादकों, पत्रकारों, राजनयिकों, राजकर्मचारियों, विद्यार्थियों आदि-आदि के साक्षात्कार चयनित हैं। इनमें मुख्य हैंसाध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी, लोकसभा के अध्यक्ष श्री बलराम जाखड़, 'तीर्थंकर' मासिक के संपादक डॉ० नेमीचन्द जैन, बेनेट कॉलमेन एण्ड कम्पनी के अध्यक्ष श्रीसाहू अशोक जैन, सर्वश्री श्रेणिक भाई, साहित्यकार प्रभाकर माचवे, हिमांशु जोशी आदि-आदि। इसमें अनेक समणियों के साक्षात्कार भी समाविष्ट
इन साक्षात्कारों के पारायण से अनेक विषय स्पष्ट होते हैं और पाठक अपनी अनुभूति के सम-धरातल पर उन्हें पाकर आनंदित होता है ।
विसर्जन
___एक शब्द में असंग्रह का आध्यात्मिक सूत्र है-विसर्जन । विसर्जन के दो अर्थ हैं----छोड़ना और देना। इन दोनों को प्रवचन के द्वारा और प्रश्नोत्तरों के माध्यम से इस लघु कृति में समझाया गया है। विसर्जन सामाजिक विषमता का परिहार-सूत्र है। हम इसके विभिन्न रूपों को इस कृति के माध्यम से समझ सकते हैं और ममत्व विसर्जन के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। लघुकाय होते हुए भी यह पुस्तक वैचारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
समाज व्यवस्था के सूत्र
समाज के दो चित्र स्पष्ट हैं । एक है पदार्थ-प्रतिबद्ध समाज और दूसरा है पदार्थ-मुक्त समाज । जब तक जीवन है तब तक पदार्थ रहेगा और उसका उपभोग भी होगा । पदार्थ का होना और उसका उपभोग करना एक बात है, पर पदार्थ-प्रतिबद्ध होना दूसरी बात है। पदार्थ-प्रतिबद्ध समाज में धन साधन नहीं, साध्य बन जाता है। धन साधन है जीवन यापन का, पर जब वह साध्य बन जाता है तब समाज में प्रतिक्रियाएं होती हैं।
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