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विविधा
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इन प्रश्नों के उत्तर लेखक ने दिये हैं, जो एक समाधान प्रस्तुत कर हिन्दी भाषा को गौरव तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही इस दिशा में कार्य करने वालों का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं ।
बालदीक्षा पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
दीक्षा गह-त्याग का एक संकल्प है, जो विशेष आध्यात्मिक विकास के लिए स्वीकृत किया जाता है। इसके साथ बाल, युवा या वृद्ध शब्द नहीं जुड़ता। व्यक्ति चाहे बाल हो या वृद्ध जब उसका मन वैराग्य से परिपूर्ण हो जाता है तब वह सांसारिक बंधनों से छूटकर क्षणिक सुखों का परित्याग कर, शाश्वत सुख पाने के लिए उत्सुक होता है। यही उत्सुकता उसे दीक्षा या संन्यास की ओर ले जाती है।
सांप्रदायिक अभिनिवेश के वशीभूत होकर एक बार लोगों ने इस बात पर तूल दिया कि 'बालकों' (अल्पवयस्कों) की दीक्षा नहीं होनी चाहिए। उस अभिनिवेश में वे भूल गए कि दीक्षा का सम्बन्ध वय से नहीं पात्रता से है। यदि उनका नारा होता कि अयोग्य दीक्षा नहीं होनी चाहिए तो वह बात समझ में आ सकती थी, पर उन्होंने तेरापन्थ धर्मसंघ में यदाकदा होने वाली बालदीक्षा या प्रौढ़ दीक्षा को निशाना बनाकर बवंडर किया था। उस समय युवाचार्य श्री ने 'बालदीक्षा' के औचित्य और अनौचित्य को मनोविज्ञान तथा सिद्धान्तों के आधार पर प्रस्तुत कर यह स्थापना की कि बालक यदि संन्यास के योग्य है तो उसे दीक्षित किया जा सकता है और वृद्ध यदि संन्यास के अयोग्य है तो उसे दीक्षित नहीं किया जा सकता । दीक्षा छोटे-बड़े वय के साथ नहीं, योग्यता के साथ अनुबद्ध है।
प्रस्तुत पुस्तिका में यही सब कुछ विस्तार से सप्रमाण प्रतिपादित है ।
महाप्रज्ञ से साक्षात्कार
साक्षात्कार का अर्थ है --- प्रत्यक्षीकरण। साक्षात्कार लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार का होता है। अलौकिक साक्षात्कार में जहां वाणी मूक हो जाती है वहां लौकिक साक्षात्कार वाणी के माध्यम से ही होता है। युवाचार्यश्री अपने इन साठ बसन्तों में निरंतर आचार्यश्री के साथ रहे हैं। उन लंबी यात्राओं में हजारों-हजारों व्यक्ति संपर्क में आए हैं और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाया है।
प्रस्तुत संकलन में कुछेक अवसरों पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के साथ हुए साक्षात्कारों का समावेश है। युवाचार्यश्री ने लिखा है--'साक्षात्कार की शैली
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