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________________ विविधा ८३ स्थिति है । वास्तविक नैतिकता वही है जो अध्यात्म से प्रभावित, प्रेरित या अनुस्यूत है । उसकी आधार-भित्ति उपयोगिता मात्र नहीं, किन्तु पवित्रता होती है। आज लोगों में धार्मिक आस्था होते हुए भी, वे नैतिकता के प्रति आस्थावान् नहीं हैं । इसीलिए जीवन और व्यवहार में विसंगतियां पैदा होती हैं । वस्तुतः धर्म और नैतिकता दो नहीं, एक ही हैं। धर्म-विहीन नैतिकता अनैतिकता का बाना ही है। प्रस्तुत कृति में २३ निबन्ध हैं और वे सब अणुव्रत के परिप्रेक्ष्य में नैतिकता का अवबोध स्पष्ट करते हैं। अणुव्रत आंदोलन नैतिकता की स्थापना का आंदोलन है और वह व्यक्ति के सर्वांगीण जीवन का स्पर्श कर चलता है। लघुकाय होते हुए भी यह पुस्तक नैतिकता के बारे में अनेक नवीन तथ्यों और अवधारणाओं को जन्म देती है । आधुनिक नीति दर्शन का समन्वय करने वाली यह पुस्तक वैचारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। तट दो : प्रवाह एक प्रस्तुत कृति में दर्शन, जीवन, समाज-व्यवस्था के साथ अनिवार्यतः सम्बद्ध जीवनधर्म, राष्ट्रधर्म, एकता, अभय, अस्तेय, अहिंसा, सह-अस्तित्व आदि प्रश्नों के उत्तर जैन मत के परिपार्श्व में प्रस्तुत किए गये हैं। एक ओर इसमें समाज एवं राष्ट्र से संबद्ध मूल्यों की व्याख्या है तो दूसरी ओर मानवअस्तित्व के लिए अनिवार्य उन मूल्यों की व्याख्या भी है जो अर्हतों द्वारा उपदिष्ट है। जैन चिन्तन की वैचारिक प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्र, समाज, व्यक्ति आदि को समझने का मौलिक चिंतन इस पुस्तक में उपलब्ध है। तेरापंथ : शासन अनुशासन तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्ष थे। उनकी दीर्घकालीन तपस्या, चारित्रिक निष्ठा और प्रखर साधना का प्रतिफलन है यह तेरापंथ । अनुशासन की दृष्टि से यह अपना विशिष्ट स्थान रखता है। अनुशासन इस संघ की नींव है । इस पथ पर चलने वाला प्रत्येक राही अनुशासन को अपना धर्म मानकर चलता है । आचार्य भिक्षु विशिष्ट अनुशास्ता थे। उन्होंने अनुशासन किया, पर किसी को परतंत्र नहीं बनाया। वही अनुशासन प्रिय हो सकता है, जो स्वतंत्रता की ज्योति को निरंतर प्रज्वलित रखता है। जो ऐसा नहीं होता वह थोपा हुआ अनुशासन होता है । वह हृदय को नहीं पकड़ता, शरीर को पकड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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