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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण समस्याएं उठेगी नहीं और यदि उठेगी तो भी व्यक्ति उनसे परास्त नहीं होगा।
अध्यात्म के अनेक बिन्दु प्रस्तुत कृति में चित हैं। इसमें विभिन्न दृष्टियों से ४१ विषयों पर चर्चा प्रस्तुत है । मन की अंन्थियों के उन्मोचन से व्यक्ति समस्या-मुक्ति का अनुभव कर सकता है। व्यष्टि का यह अनुभव समष्टि का अनुभव बन सकता है। इसी सत्य के आस-पास यह पुस्तक परिक्रमा करती है। इसके चर्चित कुछेक विषय ये हैं— मुक्ति : समाज के धरातल पर, अध्यात्म का व्यावहारिक मूल्य, अध्यात्म की सूई : मानवता का 'धागा, समस्या यानी सत्य की अनभिज्ञता, प्रदर्शन की बीमारी आदि-आदि ।
तम अनन्त शक्ति के स्रोत हो
जैन दर्शन का यह स्पष्ट अभ्युपगम है कि प्रत्येक प्राणी अनन्त शक्ति से सम्पन्न है। इस शक्ति की अभिव्यक्ति में तरतमता होती है। उसी के आधार पर प्राणियों के अनेक विभाग बन जाते हैं ।
मनुष्य अपनी इस अपार शक्ति से पूर्ण परिचित नहीं है, क्योंकि वह बहिर्मुख अधिक है, अन्तर्मुख कम। इसी तथ्य की अभिव्यक्ति लेखक की इन पंक्तियों में होती हैं- 'तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो'--इस अभिधा से स्पष्ट है कि शक्ति का स्रोत बाहर से भीतर की ओर नहीं जा रहा है, किन्तु भीतर से बाहर की ओर आ रहा है। हमारे भीतर शक्ति है, प्रकाश है, और भी बहुत कुछ है, पर हमारी इन्द्रियां बहिर्मुखी हैं और मन भी बहिर्मुख हो रहा है। इसीलिए अपनी आन्तरिक शक्ति और प्रकाश से हम अपरिचित हैं।'
___आदमी अपने में अनन्त शक्ति होने की बात मानता है, जानता नहीं। मानना ज्ञानगत होता है और जानना आत्मगत। योगविद्या जानने का साधन है। इसे हम योगविद्या कहें, अध्यात्म विद्या कहें या मोक्ष विद्या कहें-कुछ भी कहें । इसका प्रयोजन है-भीतरी शक्तियों का प्रस्फुटन, विस्फोट ।
प्रस्तुत कृति में २४ विषयों का सुन्दर संकलन है । इसमें जैन योग को समझने के लिए पर्याप्त सामग्री है। विविधाओं से मंडित यह कृति व्यक्ति को बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी बनाती है, इसमें संदेह नहीं है । अनन्त शक्ति का स्फोट बहिर्मुखी व्यक्ति कभी नहीं कर सकता, अन्तर्मुखी व्यक्ति ही उसका विस्फोट कर गन्तव्य तक पहुंच सकता है ।
नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण
आज के युग का सर्वाधिक चर्चित शब्द है--- नैतिकता। नैतिकता सामाजिक संबंधों का विज्ञान है । यह हृदय की पवित्रता का गुण है, आन्तरिक
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