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________________ विविधा विचार का अनुबन्ध मनुष्य विचारशील प्राणी है। वह विचार करता है, किन्तु व्यक्तिव्यक्ति के विचारों में रात-दिन का अंतर होता है। एक विचार व्यक्ति को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है तो दूसरा विचार रसातल में भी पहुंचा देता है। विचारों का भी बंधन होता है । व्यक्ति परिस्थिति और वातावरण से बंधा होता है। उसी प्रकार विचारों से भी बंध जाता है। बंधन बंधन है। हम इस अनुबंध को कैसे काटें, कैसे हम विचार से निर्विचार की ओर अग्रसर हों, यही इस पुस्तक का प्रतिपाद्य है । इसमें विषयों की विविधता है। सारे विषय विचारों के ऋणी हैं । उनमें विभिन्न प्रकार के विचार अभिव्यक्त हुए हैं । सतावन विषयों को संक्षेप में समेटे हुए यह पुस्तक उपयोगी विचारों से मानव-मानव को अनुप्राणित करने वाली है। बहुश्रुत लेखक पुस्तक के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-मैं मौलिक या अमौलिक-कौन सा विचार प्रस्तुत कर पाया हूं, इसकी मीमांसा मुझे नहीं करनी है और न दूसरे से इसकी याचना भी मुझे करनी है। जो विचार वर्तमान में आलोक दे सकते हैं, उलझनों को सुलझा सकते हैं, उनकी उपयोगिता है। उस उपयोगिता को स्वीकृति देकर विभिन्न अवसरों पर मैंने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, कभी बोलकर और कभी लिखकर । उन दोनों का इस पुस्तक में संकलन है।' समस्या का पत्थर : अध्यात्म को छेनो समस्याएं अनेक हैं। आदमी का समूचा जीवन एक के बाद एक आने वाली समस्याओं को सुलझाने में बीत जाता है। फिर भी वह एक भी समस्या को पूर्णत: निरस्त नहीं कर पाता। इसीलिए समस्या का पत्थर अडोल बना रहता है। उसको तराशना आदमी जानता नहीं । उसके पास वह छेनी नहीं है। अध्यात्म एक सशक्त छेनी है । उससे समस्या के पत्थर को तराशा जा सकता है। समस्याओं का मूल व्यक्ति का अपना मन है, मन की वृत्तियां हैं। काम, क्रोध, भय, लोभ, वासना, घृणा, ईर्ष्या, शोक आदि ये मन के आवेग हैं। जब तक ये जीवित हैं, तब तक बाहर में अनेक-अनेक समस्याएं उभरती रहेंगी। कोई भी वाद इनको नहीं सुलझा सकता । अध्यात्म के द्वारा ही ये समस्याएं सुलझ सकती हैं। इनके निरस्त हो जाने पर बाहर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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