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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
लगभग ४५० पृष्ठों का यह बृहत्ग्रन्थ अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का समवाय है। इसमें सामयिक, प्राचीन तथा अर्वाचीन सभी प्रकार के विषयों पर चर्चा है।
मैं : मेरा मन : मेरी शांति
प्रस्तुत ग्रन्थ में विभिन्न विषयों पर चर्चित ६५ निबंध तीन अध्यायों में विभक्त हैं
१. मैं और मेरा मन २. धर्म-क्रान्ति ३. मानसिक शान्ति के सोलह सूत्र
प्रथम अध्याय के अन्तर्गत मानसिक स्तर पर उभरने वाले प्रश्नों और मन की चंचलता के विषय में विस्तार से चर्चा प्राप्त है । अहिंसा के विभिन्न पहलुओं पर इसमें पर्यालोचन है। इसका निष्कर्ष है कि सापेक्ष सत्य के बिना व्यवहार चलता नहीं।
'धर्म क्रान्ति' के अन्तर्गत धर्म, अध्यात्म और नैतिकता से संबंधित अनेक पहलू छुए गये हैं। क्षमा, मुक्ति, आर्जव आदि दस धर्मों का इसमें व्यावहारिक धरातल का विवेचन प्राप्त है। यह विभाग धर्म के सर्वांगीण स्वरूप का सुंदर विश्लेषण करता है।
तीसरा अध्याय दो भागों में विभक्त हैं। पहला है व्यक्तिगत साधना के आठ सूत्र और दूसरा है सामुदायिक साधना के आठ सूत्र । व्यक्तिगत साधना के आठ सूत्र हैं--उदरशुद्धि, इन्द्रिय-शुद्धि, प्राण-अपान-शुद्धि, अपानवायु और मन:-शुद्धि, स्नायविक तनाव का विसर्जन, ग्रन्थिमोक्ष, संकल्पशक्ति का विकास और मानसिक एकाग्रता । सामुदायिक साधना के आठ सूत्र हैं-सत् व्यवहार, प्रेम का विस्तार, ममत्व का विसर्जन, सहानुभूति, सहिष्णुता, न्याय का विकास, परिस्थिति का प्रबोध और सर्वांगीण दृष्टिकोण ।
अन्तिम अध्याय के अन्तर्गत दर्शन के सुदूर अंतरिक्ष में प्रस्थान कर लेखक ने कुछ प्रश्न 'अहं' की भाषा में प्रस्तुत किए हैं और उनके उत्तर 'अहं' की भाषा में दिए हैं । 'अहं' का वाचक है 'मैं'।
प्रस्तुत ग्रन्थ में श्रुत, चिन्तित या वितकित सत्य की अपेक्षा दृष्ट सत्य अधिक उजागर हुआ है। लेखक का मानना है-'अपनी अंतर् अनुभूति को जागत करने में जो कर्म-कौशल है, वह दूसरों की बात मानने और अपनी बात मनवाने में नहीं है। जिस दिन हम मान्यता का स्थान दर्शन को, साक्षात्कार को उपहृत करेंगे, वह धर्म की महान् उपलब्धि का दिन होगा।'
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