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दर्शन और सिद्धान्त
है । इसमें इन मानदण्डों का कथा आदि के माध्यम से विवेचन है । इसमें किसी सम्प्रदाय - विशेष की मान्यताओं का प्रतिपादन न होकर सर्व सामान्य नैतिक मूल्यों की चर्चा है ।
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