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________________ ७६ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण अणुव्रत आन्दोलन का अपना वैशिष्ट्य है। यह संप्रदाय-मुक्त है, इसलिए जनमानस इसके प्रति आकृष्ट है । इस पुस्तिका में आन्दोलन आगे क्या करना चाहता है, इसकी एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत है । अणुव्रत विशारद अणुव्रत मानवता की आचारसंहिता है, साम्प्रदायिक एकता का प्रयोग है तथा वैचारिक क्रान्ति की पृष्ठभूमि पर उभरने वाला जीवन्त नैतिक प्रयोग है । अणुव्रत की आस्था व्यक्ति निर्माण में है। व्यक्ति जितना नैतिक और आचारनिष्ठ होगा समाज उतना ही उन्नत, सुसंस्कृत और समृद्ध होगा। बचपन से ही यदि अणुव्रत का पाठ पढ़ाया जाये तो बच्चा सुसंस्कृत और होनहार मानव बन सकता है । इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए अणुव्रत से संबंधित तीन परीक्षाएं होती हैं । क्रम इस प्रकार है-(१)अणुव्रत विज्ञ । (२)अणुव्रत विशारद । (३) अणुव्रत प्रभाकर । । प्रस्तुत पुस्तक नैतिक पाठमाला भाग २ का नामान्तरित संस्करण है । यह अणुव्रत परीक्षा बोर्ड द्वारा स्वीकृत १०-११ वीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक है। इसका उद्देश्य है विद्यार्थी में मानवीय गुणों को विकसित करना । वे मानवीय गुण हैं--- मृदुता, सत्यनिष्ठा, अभय, अनासक्ति, श्रम, स्वावलंबन आदि । नैतिक पाठमाला नैतिक शिक्षा की आज अत्यन्त आवश्यकता महसूस की जा रही है। शिक्षा-क्षेत्र की उइंडता से सारे विचलित हैं। सभी यह चाहते हैं कि विद्यार्थी का जीवन सुसंस्कारित और अनुशासित हो, क्योंकि आगे चलकर विद्यार्थी ही समाज और राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। मानवीय गुणों के विकास की उर्वरा भूमि है विद्यार्थी-जीवन । इसे परिलक्षित कर नैतिक पाठ्यक्रम का सृजन किया गया है। इसमें पांचवीं कक्षा से ग्यारहवीं कक्षा तक नैतिक पाठ्यक्रम का निर्धारण कर पुस्तकों का निर्माण हुआ। इसमें नैतिकता के तेरह मानदंड मान्य किए गए हैं और उन्हीं के आधार पर पाठ्यक्रम विकसित किया गया है। वे तेरह मानदंड हैं१. अभय २. अहं का विसर्जन ३. सत्य ४. आर्जव ५. करुणा ६. धैर्य ७. अनासक्ति ८. स्वावलंबन ६. आत्मानुशासन १०. सहिष्णुता ११. कर्त्तव्यनिष्ठा १२. व्यक्तिगत संग्रह का विसर्जन और १३. प्रामाणिकता । प्रस्तुत पुस्तक दसवीं-ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए लिखी गई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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