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________________ दर्शन और सिद्धान्त ७५ १. अणुव्रत । ४. अहिंसक समाज संरचना । २. अणुव्रत आन्दोलन । ५. असंग्रह । ३. नैतिकता। इनमें कुल ५५ निबंध हैं, जिनमें अणुव्रत को स्पष्ट किया गया है । अणुव्रत आन्दोलन व्रतों का आन्दोलन है, छोटे-छोटे नियमों को ग्रहण करने की प्रेरणा का आन्दोलन है। अणुव्रत के सर्वांगीण दर्शन को समझने के लिए यह पुस्तक एक अनिवार्यता है। राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं और अणुव्रत आज प्रत्येक राष्ट्र अपनी राष्ट्रीय समस्याओं से आक्रांत है । अन्तर् राष्ट्रीय समस्याएं भी उसे छूती हैं और तब वह उनसे प्रभावित हुए बिना भी नहीं रहता । इसीलिए उसे अपने राष्ट्र तथा दूसरे राष्ट्रों की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है, समाधान खोजना होता है । सारी समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अणुव्रत आन्दोलन नैतिक निष्ठा को जगाने का आन्दोलन है। इसकी मान्यता है कि व्यक्ति में नैतिक निष्ठा जितनी प्रबल होगी, उतना ही वह समस्याओं से कम आक्रांत होगा। आज अनैतिकता का प्रसार सभी क्षेत्रों में है। शिक्षण-संस्थाएं और न्यायपालिकाएं भी इससे स्पृष्ट हैं । अतः सर्वत्र समस्याएं उभरती हैं । एक दृष्टि से देखा जाए तो अनैतिकता मूल समस्या है और यही दूसरी सारी समस्याओं की जननी है। आज की मुख्य समस्याए हैं-- अनुशासनहीनता, दायित्वबोध की कमी, करुणा और संवेदनशीलता का अभाव, अतिकामुकता, अतिलोभ, विस्तारवादी मनोवृत्ति, हिंसा की ओर उन्मुखता, लोलुपता, पदार्थासक्ति आदि । अणुव्रत आन्दोलन इन सबके समाधान का सूत्र प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत लघु कृति में-राष्ट्रधर्म, अणु-अस्त्र और मानवीय दृष्टिकोण, युद्ध और अहिंसा, सह-अस्तित्व, एकता की समस्या, अणुव्रत और साम्यवाद, लोकतंत्र को चुनौति, अभय की शक्ति—इन विषयों पर विशद विचार हैं । अणुव्रत आन्दोलन के विचार-दर्शन को समझने में यह पुस्तक उपयोगी है। अणुव्रत आन्दोलन और भावी कार्यक्रम की रेखाएं इस लघु पुस्तिका का प्रतिपाद्य स्वयं इसके शीर्षक से ही ज्ञात हो जाता है । अध्यात्म जागरण के लिए अनेक धर्म-संप्रदाय प्रयत्नशील हैं । पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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