________________
महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
बालक जब धीरे-धीरे इन विषयों से परिचित होता जाता है, वह उनका पारायण कर निष्णात बनता जाता है ।
૭૪
जैन परंपरा, संस्कृति तथा जैन तत्त्वज्ञान को प्रारंभिक रूप से समझने के लिए ये पुस्तकें बहुत उपयोगी हैं ।
अणुव्रत : एक परिचय
अनैतिकता, भ्रष्टाचार और स्वच्छंदता के युग में आचार्य श्री तुलसी ने अनुशासित, मर्यादित और व्यवस्थित जीवन जीने के लिए लोगों को अणुव्रत का संदेश दिया ।
यह लघु पुस्तिका अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तन काल — सन् ४८ से सन् ८२ तक का संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है । अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन क्यों हुआ ? उसका भारतीय जनता ने कैसा स्वागत दिया ? नेताओं की दृष्टि में इसका क्या चित्र बना ? आदि-आदि विषयों को छूते गए इसमें अणुव्रत संबंधी संक्षिप्त जानकारी प्राप्त है ।
अणुव्रत-दर्शन
अनैतिकता के आज अनेक रूप प्रचलित हैं । उनमें से मुख्य हैं : --अर्थ विषयक अनतिकता, चरित्र विषयक अनैतिकता, समाजनीति और राजनीति विषयक अनैतिकता आदि । इन अनैतिकताओं से सारा मानव समाज त्रस्त है । देश चाहे विकासशील हो या न हो, धनाढ्य हो या निर्धन, सर्वत्र अनैतिकता का बोलबाला है । गरीब ही इस चंगुल में नहीं फंसा है, धनवान भी इसके फंदे में फंसा हुआ है ।
अणुव्रत आंदोलन इन अनैतिकताओं की ओर अंगुली -निर्देश करता है और इनसे छुटकारा पाने की प्रेरणा देता है । मानवीय दृष्टिकोण और आध्यात्मिक सूत्रों के आधार पर नैतिकता का स्वरूप निर्धारित कर व्यक्ति को नैतिक बनने की प्रायोगिक भूमिका प्रस्तुत करना इस आन्दोलन का कार्य है । यह नैतिक आन्दोलन चालीस वर्षों से चल रहा है और कहा जा सकता है कि यही एकमात्र नैतिकता का संदेश देने वाला आन्दोलन है । इसके प्रभाव से आज सर्वत्र नैतिकता की बात सोची-समझी जा रही है ।
प्रस्तुत पुस्तक में अणुव्रत की पृष्ठभूमि में रहे हुए दर्शन को विवेचित किया गया है । अणुव्रत दर्शन का मूल आधार है अध्यात्म | विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में इसको प्रस्तुत कर लेखक ने आज के वैज्ञानिक मानव को अध्यात्म की ओर प्रेरित किया है, प्रस्थित किया है । इस पुस्तक के पांच अध्याय हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org