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दर्शन और सिद्धान्त
तत्त्व, विश्व-स्थिति का मूल सूत्र, विकासवाद के मूल सूत्र, आदि आदि । यह युवाचार्य श्री की प्रारंभिक कृतियों में से एक है । पुस्तक आकार में लघु होकर भी जैन दर्शन विषयक अनेक नवीन जानकारियां देती है ।
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी साधुयों की भिक्षावृत्ति
अनेक प्रान्तों में जब बेगर्स बिल (भिक्षा निरोधक बिल) प्रस्तुत हुआ तब यह आवश्यक हो गया कि भिक्षु और भिखारी का भेद स्पष्ट किया जाए । इसी संदर्भ में तेरापन्थी मुनियों की या जैन मुनियों की भिक्षा विधि को स्पष्ट करने वाली यह पुस्तिका लिखी गई । यह निबंध साधुओं की भिक्षावृत्ति का सर्वांगीण विवेचन प्रस्तुत करता है ।
धर्मबोध (भाग १, २, ३)
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भारत में प्रमुख रूप से दो संस्कृतियां रही हैं- श्रमण संस्कृति और वैदिक संस्कृति । श्रमण संस्कृति के अन्तर्गत मुख्यतः दो परम्पराएं आती हैं-जैन और बौद्ध | जैन परंपरा का सारा प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में है । मूल आगम उसकी धरोहर है । प्राकृत भाषा जब दुरूह हुई तब उस पर संस्कृत
टीकाएं लिखी जाने लगीं । आज उन टीका ग्रन्थों को समझना भी सरल नहीं रहा है । भाषा की दुविधा के कारण जैन धर्म-दर्शन जन साधारण का • भोग्य नहीं बना । आज दूसरी-दूसरी परम्पराओं के व्यक्तियों की बात छोड़ दें, जैन परंपरावलंबी व्यक्ति भी अपने मूल आगमों को समझने में दुविधा का अनुभव करते हैं । अतः यह सोचा गया कि प्रारंभ से ही बच्चों को जैन तत्त्वज्ञान का शिक्षण देने के लिए हिन्दी भाषा में उसका प्रस्तुतीकरण हो ।
इसी दृष्टि से जैन पाठ्यक्रम के रूप में इन तीन भागों की रचना की गई । तत्त्वज्ञान स्वयं कठिन होता है । उसको यदि सिद्धांत पक्ष की जटिलताओं से रखा जाए तो बालक उसमें रुचि नहीं ले पाते । यदि तत्त्वज्ञान को कथाओं, वार्ता-प्रसंगों तथा प्रश्नोत्तरों के माध्यम से दिया जाए तो बच्चे उसको सरलता से हृदयंगम कर लेते हैं ।
प्रस्तुत पुस्तकों में तत्त्वज्ञान के अतिरिक्त जीवन में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने के उपदेश तथा महापुरुषों की जीवनियां भी हैं । इनमें धर्म की उपासना के विविध सूत्र भी संकलित हैं । इन पुस्तकों में बच्चों को कंठस्थ करने की प्रेरणा भी है । किस प्रकार का कंठस्थ-ज्ञान जीवन में उपयोगी होता है, उसका उल्लेख है ।
इन पुस्तकों में क्रमिक योग्यता के अनुसार विषय गंभीर होते गए हैं ।
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