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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
तीसरे अध्याय के १४ शीर्षकों में तेरापंथ धर्मसंघ के कुछेक आचार्य, मुनि तथा शासनसेवी उपासकों का जीवनवृत्त है । चौथे अध्याय में जैन तत्त्ववाद की मीमांसा है। इसमें तात्कालिक अनेक सैद्धांतिक पक्षों का निरूपण भी है । इस प्रकार यह पुस्तक अनेक विषयों को छूती हुई पाठक के सामने अनेक ऐतिहासिक जानकारियां प्रस्तुत करती हैं ।
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श्रमण संस्कृति की दो धाराएं : जैन और बौद्ध
भारत में दर्शन की दो सुख्य धाराएं रही है- वैदिक और श्रमण । श्रमण धारा में मुख्य दो प्रवाह हैं- जैन और बौद्ध । इन दोनों प्रवाहों में समानता के तत्त्व काफी हैं । प्रस्तुत लघु पुस्तिका में इन्हीं को अभिव्यक्ति दी गई है । लघु पुस्तिका होते हुए भी यह जैन और बौद्ध दर्शन का सुंदर तुलनात्मक चित्रण प्रस्तुत करती है । यह पुस्तक 'नयवाद' के शीर्षक से भी प्रकाशित हुई है ।
दया दान पर प्राचार्य श्री भिक्षु का जैन शास्त्र सम्मत दृष्टिकोण
इसमें तेरापन्थ धर्मसंघ सम्मत दया और दान विषयक ऊहापोह है । आचार्य भिक्षु तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक थे । उन्होंने जैन आगमों के आधार पर दया और दान – इन दो विषयों पर विस्तार से विवेचन प्रस्तुत किया । इस विवेचन से तात्कालिक दया दान की प्रचलित मान्यताओं पर प्रहार हुआ । अन्य संप्रदाय तिलमिला उठे । आचार्य भिक्षु के उसी चिंतन को इस पुस्तक में आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है ।
इस कृति में आगम-सम्मत दया दान की परिभाषाएं हैं और इनको लौकिक और लोकोत्तर- इन दो विभागों से समझने का स्पष्ट निर्देश है । लौकिक दया और लौकिक दान- सहयोग है, परस्परावलंबन का एक साधन है । लोकोत्तर दया और लोकोत्तर दान - मोक्ष का मार्ग है, रत्नत्रयी का साधक है । आचार्य भिक्षु ने लौकिक दान-दया का निषेध नहीं, विवेक दिया । यह सब इसमें विवेचित है ।
विश्व स्थिति
पचास पृष्ठों की इस लघु पुस्तिका में ग्यारह विषयों को संक्षेप में समझाया गया है । वे विषय हैं- विश्व अनादि-अनन्त है, स्यादवाद, दो
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