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________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण यह कृति जैन संस्कृति, सभ्यता, सिद्धान्त और दर्शन का अवबोध देती है । यह संकलन विद्यार्थियों को लक्ष्य कर किया गया था और यह 'जैन विद्या' के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। इसमें जैन परम्परा के विशिष्ट आचार्य और विशिष्ट स्थल, विदेशों में जैन धर्म, भारत के विभिन्न अंचलों में जैन धर्म आदि आदि विषयों का भी समावेश है। जैन तत्त्व-चिन्तन आचार्यश्री तुलसी ने 'जैन सिद्धान्त दीपिका' का प्रणयन किया। प्रस्तुत ग्रन्थ उसकी प्रस्तावना का परिवधित रूप है। इसमें जैन तत्त्व सम्बन्धी अनेक तथ्य चचित हुए हैं। इसमें आत्मवाद, कर्मवाद, षड्द्रव्य, नौ तत्त्व, दयादान, पाप-पुण्य, आत्मा और कर्म का सम्बन्ध, जातिवाद, अहिंसा और अनुकंपा, लौकिक धर्म और लोकोत्तर धर्म का स्वरूप, प्रवृत्ति और निवृत्ति, धर्म क्यों और क्या ? आदि-आदि विषयों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। तीन परिशिष्टों से मंडित यह ग्रन्थ जैन धर्म-दर्शन सम्बन्धी अनेक जानकारियां प्रस्तुत करता है । जैन धर्म-दर्शन युवाचार्यश्री ने जैन दर्शन : मनन और मीमांसा ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ जैन दर्शन के प्रमुख विषयों का सप्रमाण दिग्दर्शन कराने वाला बृहत्काय ग्रन्थ है । जैन दर्शन के विशिष्ट अध्येताओं के लिए यह उपयोगी है । एक सुझाव आया कि जैनेतर व्यक्तियों के लिए भी एक ऐसा ग्रन्थ तैयार हो जो उन्हें सैद्धांतिक जटिलताओं से उबार कर जैनधर्म-दर्शन का ज्ञान करा सके। इस दृष्टि को क्रियान्वित करने के लिए यह सोचा गया कि नये ग्रन्थ के निर्माण के बदले निर्मित बृहद् ग्रंथ को ही संक्षिप्त कर जैनेतर व्यक्तियों के लिए उपयोगी बना दिया जाये। इसी सोच का प्रस्तुत ग्रन्थ परिणाम है । इसमें यत्रतत्र विषयों का संक्षेपीकरण किया गया है। शेष सारा बृहद् ग्रन्थ के सदृश ही है जैनदर्शन में प्राचार-मीमांसा जैन आचार का मूल है-त्रिपदी। सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चारित्र-यह त्रिपदी रत्नत्रयी कहलाती है । जैन साधना पद्धति में यही आदि-बिन्दु है और यही चरम-बिन्दु है । आदि-बिन्दु में इनका अल्प विकास है और चरम-बिन्दु में इनकी पूर्णता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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