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दर्शन और सिद्धान्त
श्री के और भाषा युवाचार्य श्री की।
इस लघु पुस्तिका में १८ विषय हैं और वे अहिंसा और अनुकंपा की परिक्रमा किये चलते हैं।
तेरापंथ की अहिंसा विषयक मान्यता को सप्रमाण समझने के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।
जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व-खण्ड १-२
इन दो खण्डों के पांच विभाग हैं। प्रथम खण्ड में तीन विभाग हैं१. परम्परा और इतिहास २. जैन दर्शन में ज्ञान-मीमांसा ३. जैन दर्शन में प्रमाण-मीमांसा । दूसरे खण्ड में दो विभाग हैं-१. जैन दर्शन में तत्त्व-मीमांसा' २. जैन दर्शन में आचार-मीमांसा। साथ ही साथ इसमें तीन परिशिष्ट भी
ये दोनों खण्ड जैन धर्म-दर्शन को समग्रता में प्रस्तुत करते हैं। ऐसा एक भी मुख्य विषय नहीं छूटता जिसका इसमें स्पर्श न हुआ हो। सारे विषयों को विस्तार से समझाया गया है और यत्र-ता आधुनिक ज्ञान की झलक के साथ तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है । जैन तत्त्ववाद बहुत विस्तृत है । उसकी मीमांसा भी विस्तार से हुई है। जैन संस्कृति और सभ्यता का भी इसमें विशद वर्णन है।
___लगभग हजार पृष्ठों के ये दो खण्ड जैन परम्परा सम्मत सभी विषयों का प्रतिपादन करते हैं और पाठक के समक्ष जैन धर्म-दर्शन को समग्रता से प्रस्तुत करते हैं।
एक प्रकार से कहा जा सकता है कि दो खण्डों में विभाजित यह ग्रन्थ जैन आगमों का निचोड़ है।
जैन परंपरा का इतिहास
युवाचार्य महाप्रज्ञ की बहुचचित पुस्तक 'जैन दर्शन: मनन और मीमांसा' के पांच खंड हैं । उनमें पहला है-परम्परा और कालचक्र । उसी का यह संक्षिप्त और परिष्कृत रूप है। उसमें छह अध्याय हैं-----
१. भगवान् ऋषभ से पार्श्व तक २. भगवान् महावीर ३. भगवान् महावीर की उत्तरकालीन परंपरा ४. जैन साहित्य ५. जैन संस्कृति ६. चिन्तन के विकास में जैन आचार्यों का योगदान ।
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