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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
युवाचार्य श्री मानते हैं कि आज भारत में कर्मवाद की सही समझ वाले व्यक्ति इनेगिने हैं । दूसरे सारे व्यक्ति प्रवाहपाती होकर, एक प्रतिबद्ध मान्यता को लिए चलते हैं । प्रस्तुत पुस्तक कर्मवाद के विषय की यथार्थ जानकारी देकर, मिथ्या मान्यताओं के कुहासे को खंडित करती है।
इसके २७ परिच्छेद हैं। उनमें से कुछेक ये हैं-कर्म : चौथा आयाम, कर्म की रासायनिक प्रक्रिया, कर्म का बंध, कर्मवाद के अंकुश, पर्दे के पीछे कौन, समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन, कर्मशास्त्र : मनोविज्ञान की भाषा में आदि-आदि।
प्रस्तुत ग्रंथ में जैन परंपरा सम्मत कर्मवाद के भेद-प्रभेदों का इतना विस्तार नहीं है जितना विस्तार है कर्मवाद के वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक संदर्भ का। इन दोनों संदर्भो में इसका अध्ययन एक नई दिशा का उद्घाटन करता है । ढाई सौ पृष्ठों का यह ग्रंथ अपने विषय का महाग्रंथ है ।
अतीत का अनावरण
यह आचार्य श्री और युवाचार्य श्री की संयुक्त कृति है। यह शोध प्रधान पुस्तक है, जिसमें अतीत के अनेक तथ्यों को अनावृत किया गया है। इसमें पच्चीस विषयों पर निमर्श प्राप्त है। कुछेक विषय विद्वानों के लिए विवादास्पद रहे हैं, उनका जैन दृष्टि से समाधान किया गया है । वे विषय ये
१. श्रमण संस्कृति का प्राग-वैदिक अस्तित्व २. आत्मविद्या क्षत्रियों की देन ३. जैन धर्म के पूर्वज नाम ४. भगवान महावीर ज्ञातपुत्र थे या नागपुत्र ? ५. भगवान् महावीर और नागवंश ।
इस पुस्तक में अनेक मौलिक स्थापनाएं प्रस्तुत की गई हैं। उपनिषदों के बारे में युवाचार्य श्री का चिंतन है कि कुछेक उपनिषद् श्रमण परंपरा के हैं, उन पर श्रमण संस्कृति का प्रभाव है । 'जैन दर्शन और वेदान्त' शीर्षक के अन्तर्गत युवाचार्य श्री कहते हैं— 'जैन और वेदान्त दोनों आध्यात्मिक दर्शन हैं, इसीलिए इनके गर्भ में समता के बीज छिपे हुए हैं । अंकुरित और पल्लवित दशा में भाषा और अभिव्यक्ति के आवरण मौलिक समता को ढांक कर उसमें भेद किए हुए हैं। भाषा के आवरण को चीरकर हम झांक सके तो पावेंगे कि दुनिया के सभी दर्शनों के अन्तस्तल उतने दूर नहीं हैं जितने उनके मुख
प्रस्तुत पुस्तक में भगवान् महावीर नागवंशी थे, इसको सप्रमाण प्रति
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