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________________ ६२ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में भगवान् महावीर ने सत्य की उपलब्धि के दो उपाय बताए-अतीन्द्रिय ज्ञान और इन्द्रिय ज्ञान । सभी प्राणी इन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न हैं। मनुष्य में इन्द्रिय ज्ञान सबसे अधिक विकसित है। अतीन्द्रिय ज्ञान योगियों को होता है। वह सबमें नहीं होता। इन्द्रिय ज्ञान की सत्यता सापेक्षता पर निर्भर होती है। इसलिए अनेकान्त का दूसरा नाम है-—सापेक्षवाद । सापेक्षवाद और स्याद्वाद के सहारे अनेकान्त को समझा जा सकता है और अनेकान्त के सहारे सत्य तक पहुंचा जा सकता है। यह सत्य की उपलब्धि का निरापद उपाय है । मनीषी लेखक अपनी प्रस्तुति में सत्य के बारे में विभिन्न दार्शनिकों की विचारधाराएं प्रस्तुत करते हुए कहते हैं "भगवान् महावीर के सम-सामयिक संजयवेलट्ठिपुत्त ने कहा था--- मैं नहीं जानता कि वस्तु सत् है तो फिर मैं कैसे कहूं कि वह सत् है । मैं नहीं जानता कि वह असत् है तो फिर मैं कैसे कहूं कि वह असत् है। यह भारतीय दर्शन का संशयवाद है । पश्चिमी दर्शन में संशयवाद के प्रवर्तक 'पाइरो' (३६५२७५ इ. पू.) हैं। वे अरस्तु के सम-सामयिक थे । थेलीज से लेकर अरस्तू तक के दार्शनिकों के पारस्परिक मतभेदों को देखकर उन्होंने इस सिद्धान्त की स्थापना की कि मनुष्य के लिए वास्तविक सत्य तक पहुंचना संदिग्ध है। निर्विकल्प स्वानुभूति, सविकल्प बुद्धि और इन्द्रियानुभूति निश्चयात्मक ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकती। इसलिए सत्य को जानने का कोई उपाय नही है । कांट के अनुसार ज्ञान के लिए इन्द्रिय-संवेदन और बुद्धि-विकल्प-दोनों अनिवार्य हैं । ज्ञान सत्य और निश्चित होता है । सत्यता इन्द्रिय-संवेदनों से आती है और निश्चय बुद्धि विकास से आता है।' प्रस्तुत कृति में कुछेक जागतिक समस्याओं का अनेकान्त दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है । सापेक्ष दृष्टिकोण ही समस्याओं को समाहित कर सकता प्रस्तुत कृति में अनेक विषय चचित हैं कर्मवाद, आत्मा और परमात्मा, प्रत्ययवाद और वस्तुवाद, परिणामीनित्यवाद, तत्त्ववाद, अद्वैत और द्वैत । इनकी चर्चा में अनेक वैज्ञानिक तथ्य भी अभिव्यक्त हुए हैं। विज्ञान की उपेक्षा कर दर्शन को सही ढंग से नहीं समझा जा सकता । आज की सद्यस्क अपेक्षा है कि दर्शन के साथ विज्ञान का अध्ययन हो। यह इस लघु कृति से ज्ञात होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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