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३. दर्शन और सिद्धांत
भारतीय दर्शनों की त्रिवेणी में जैन दर्शन की धारा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्रस्तुत खंड के अन्तर्गत ३५ पुस्तकों का परिचय है। जैन दर्शन के विविध पहलुओं की जानकारी के लिए ये पुस्तकें अत्यंत उपयोगी हैं। 'जैन दर्शन : मनन और मीमांसा'-यह बृहद्काय ग्रंथ जैन धर्म-दर्शन से सम्बंधित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों को अपने में समेटे हुए है । इस विभाग के अंतर्गत अनेकांत, कर्मवाद, दान-दया, अहिंसा, जैन दर्शन में ज्ञान-मीमांसा, प्रमाण-मीमांसा, तत्त्वमीमांसा आदि से संबंधित ग्रंथ हैं । इन ग्रंथों में अन्यान्य भारतीय दर्शनों तथा समकालीन पाश्चात्य विचारों का तुलनात्मक दृष्टि से समाकलन भी हुआ है । युवाचार्यश्री के दार्शनिक ग्रंथों की यह अपूर्व विशेषता है कि वे दर्शन के जटिलतम विषय को सहज-सुबोध भावभाषा में प्रस्तुत कर उसकी संयुति जीवन के साथ करते हैं। वे तर्क को सर्वथा अप्रयोज्य नहीं मानते पर यह मानते हैं कि तर्क कहीं पहुंचाता नहीं, भटकाता है।
प्रस्तुत खंड में 'अतीत का अनावरण' तथा 'मनन और मूल्यांकन' ये दो शोध निबंधों के संग्रह हैं। इसी खंड में अणुव्रत आंदोलन से सम्बंधित कृतियों का परिचय भी है।
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