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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
चैतन्य नहीं होता । इसमें विस्तार भी है और चैतन्य भी है । प्रस्तुत कृति में आचार्यश्री के शैशव से लेकर आचार्यकाल के पचीस वर्षों का महत्त्वपूर्ण लेखा-जोखा है | आचार्य श्री की दो सुदीर्घ यात्राओंबम्बई और कलकत्ता का महत्त्वपूर्ण विवरण भी इसमें है, तथा वह सब कुछ है जो पाठक आचार्यश्री के विषय में जानना चाहते हैं । इसमें आयार्यश्री से संबंधित संस्मरण, सिद्धान्त, विचार, विरोध और विनोद, जनसंपर्क और एकांत, गति और स्थिति सबका सामंजस्य है ।
यह कृति दस अध्यायों में विभक्त है—
१. संघर्ष की वेदी पर
२. तेरापंथ के आचार्य
३. अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक ४. महान् परिव्राजक ५. विचार-मंथन
६. नव उन्मेष : नई दिशाएं ७. जीवन दर्शन
८. धर्म-बीज
६. मुनि जीवन १०. शैशव
जीवन-वृत्त के रूप में इस कि इसमें प्रशस्ति नहीं अपितु आचार्यश्री जनता के समक्ष प्रस्तुत हुआ है
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पुस्तक का अधिक महत्त्व इसलिए भी है का यथार्थ व्यक्तित्व और कर्तृत्व
आचार्य श्री तुलसी [ जीवन पर एक दृष्टि ]
यह कृति सन् १९५२ में लिखी गई । यह आचार्य श्री का प्रथम जीवन-वृत्त है । इसकी भूमिका में प्रसिद्ध विचारक जैनेन्द्रकुमार लिखते हैं'तुलसीजी को देखकर ऐसा लगा कि यहां कुछ है, जीवन मूच्छित और परास्त नहीं है, उसकी आस्था और सामर्थ्य है । व्यक्तित्व में सजीवता है और एक विशेष प्रकार की एकाग्रता है । वातावरण के प्रति उनमें ग्रहणशीलता और दूसरे व्यक्तियों और समुदायों के प्रति संवेदनशीलता है । उनके व्यक्तित्व को प्रकाश में लाने वाली इन पुस्तक का प्रकाशन समयोपयोगी है । लेखक उनके निकटवर्ती मुनि हैं । अतः समग्रता से आचार्यश्री के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का प्रस्तुतीकरण हुआ है । जीवनी के अतिरिक्त इसमें अध्ययन और विवेचन के चिह्न भी हैं ।'
यह लघुकाय कृति आचार्य श्री के कर्तृत्व और व्यक्तित्व को समझने में सहायक है । इसके पश्चात् दो बृहद्काय जीवन-ग्रन्थ और प्रकाश में आ चुके हैं ।
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