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________________ ५६ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण चैतन्य नहीं होता । इसमें विस्तार भी है और चैतन्य भी है । प्रस्तुत कृति में आचार्यश्री के शैशव से लेकर आचार्यकाल के पचीस वर्षों का महत्त्वपूर्ण लेखा-जोखा है | आचार्य श्री की दो सुदीर्घ यात्राओंबम्बई और कलकत्ता का महत्त्वपूर्ण विवरण भी इसमें है, तथा वह सब कुछ है जो पाठक आचार्यश्री के विषय में जानना चाहते हैं । इसमें आयार्यश्री से संबंधित संस्मरण, सिद्धान्त, विचार, विरोध और विनोद, जनसंपर्क और एकांत, गति और स्थिति सबका सामंजस्य है । यह कृति दस अध्यायों में विभक्त है— १. संघर्ष की वेदी पर २. तेरापंथ के आचार्य ३. अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक ४. महान् परिव्राजक ५. विचार-मंथन ६. नव उन्मेष : नई दिशाएं ७. जीवन दर्शन ८. धर्म-बीज ६. मुनि जीवन १०. शैशव जीवन-वृत्त के रूप में इस कि इसमें प्रशस्ति नहीं अपितु आचार्यश्री जनता के समक्ष प्रस्तुत हुआ है Jain Education International पुस्तक का अधिक महत्त्व इसलिए भी है का यथार्थ व्यक्तित्व और कर्तृत्व आचार्य श्री तुलसी [ जीवन पर एक दृष्टि ] यह कृति सन् १९५२ में लिखी गई । यह आचार्य श्री का प्रथम जीवन-वृत्त है । इसकी भूमिका में प्रसिद्ध विचारक जैनेन्द्रकुमार लिखते हैं'तुलसीजी को देखकर ऐसा लगा कि यहां कुछ है, जीवन मूच्छित और परास्त नहीं है, उसकी आस्था और सामर्थ्य है । व्यक्तित्व में सजीवता है और एक विशेष प्रकार की एकाग्रता है । वातावरण के प्रति उनमें ग्रहणशीलता और दूसरे व्यक्तियों और समुदायों के प्रति संवेदनशीलता है । उनके व्यक्तित्व को प्रकाश में लाने वाली इन पुस्तक का प्रकाशन समयोपयोगी है । लेखक उनके निकटवर्ती मुनि हैं । अतः समग्रता से आचार्यश्री के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का प्रस्तुतीकरण हुआ है । जीवनी के अतिरिक्त इसमें अध्ययन और विवेचन के चिह्न भी हैं ।' यह लघुकाय कृति आचार्य श्री के कर्तृत्व और व्यक्तित्व को समझने में सहायक है । इसके पश्चात् दो बृहद्काय जीवन-ग्रन्थ और प्रकाश में आ चुके हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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