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________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण वक्ता, साहित्य स्रष्टा, अनुशास्ता, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक आदि-आदि तो थे ही, साथ ही साथ स्वाध्यायी, ध्यानी और आत्मा की गहराईयों में डबकी लगाने वाले भी थे। श्रीमज्जयाचार्य सफल यात्रा-लेखक और जीवन-वृत्त के शिल्पी भी थे। प्रस्तुत कृति श्रीमज्जयाचार्य की निर्वाण शताब्दी (सं.२०३८) के उपलक्ष्य में प्रकाशित की गई है। इसमें जयाचार्य का प्रशिक्षक और वैज्ञानिक रूप निखर कर प्रस्तुत हुआ है । उन्होंने समूचे तेरापंथ धर्मसंघ को एक विशेष प्रयोगशाला के रूप में कैसे बदल डाला, वह सब प्रस्तुत कृति में है। चौवालीस शीर्षकों में निबद्ध यह कृति जयाचार्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रस्तुत करती है । इसमें जयाचार्य के जीवन से सम्बन्धित जीवन-संस्मरण, घटनाएं और व्यंग्य-विनोद भी हैं। उनके द्वारा रचित मर्यादाएं और निर्मित साहित्य की नोंध व्यक्ति को उनके महान् कर्तृत्व की झांकी दे जाती है। आचार्य श्री तुलसी और युवाचार्य श्रीमहाप्रज्ञ की यह संयुक्त कृति अपने आपमें श्रीमज्जयाचार्य को एक अनुपम श्रद्धांजलि है । इसका नयनाभिराम मुद्रण स्वयं व्यक्ति को इसके पारायण की प्रेरणा देता है । धर्मचक्र का प्रवर्तन इसमें आचार्य श्री तुलसी की जीवन गाथा है । आचार्य श्री के कर्तृत्व और व्यक्तित्व को सात अध्यायों में अभिव्यक्ति दी गई है। वे सात अध्याय ये हैं१. धर्म का नया क्षितिज। ५. सृजनात्मक दृष्टियां : रचनात्मक प्रवृत्तियां २. महान् परिव्राजक । ६. विचार-मंथन । ३. तेरापंथ के आचार्य । ७. व्यक्तित्व । ४. संघर्ष की वेदी पर ये अध्याय छोटे-बड़े सैकड़ों विषयों को अपने में समेटे हुए हैं। आचार्यश्री के मुनि-जीवन से लेकर आचार्य-काल के पचासवें वर्ष (अमृत महोत्सव वर्ष) तक का सारा लेखा-जोखा इनमें निबद्ध है। पूरे ग्रंथ का नयनाभिराम प्रस्तुतीकरण और विषयों का सरल विश्लेषण इस ग्रंथ की अपनी विशेषता है। लेखक के शब्दों में आचार्य श्री की जीवन-गाथा भारतीय चेतना का एक अभिनव उन्मेष है । इतना लंबा मुनि-जीवन, इतना लंबा आचार्यपद, इतनी लम्बी पदयात्रा, इतना व्यापक जन-सम्पर्क, इतना जन-जागरण का प्रयत्न, इतना पुरुषार्थ, इतना आध्यात्मिक विकास, इतना साहित्यसृजन, इतने व्यक्तियों का निर्माण-वस्तुतः ये सब अद्भुत हैं । आचार्य श्री की जीवन-गाथा आश्चर्यों की वर्णमाला से आलोकित एक महालेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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