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________________ ५२ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण सूत्र बनते हैं। इस प्रकार पुस्तक में विविध विषय चचित हैं जो भगवान् महावीर के सर्वांगीण सिद्धान्त और दर्शन को स्पष्ट करते है। भिक्षु विचार-दर्शन तेरापंथ धर्म-संघ अपनी त्रिपदी के लिए विख्यात है। वह त्रिपदी हैएक आचार्य, एक आचार, एक विचार । इस धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक थे आचार्य भिक्षु । इनका मूल नाम था-भीखणजी। ये मारवाड़ में वि. सं. १७८३ में जन्में, वि. १८०८ में स्थानकवासी मुनि बने, वि. १८१७ में तेरापंथ का प्रवर्तन किया और वि. १८६० में दिवंगत हो गए। यह इनके जीवन की काल-अवधि के चार पडाव हैं। इनमें इन्होंने जो पुरुषार्थ और पराक्रस से अजित किया वह है तेरापंथ की थाती। इनकी दो बड़ी विशेषताएं थीं—१. विचार और चारित्र की विशुद्धि २. संघ-व्यवस्था की समुचित रीति-नीति का अवबोध । तेरापंथ द्विशताब्दी (वि. २०१७) के पावन प्रसंग पर आचार्य श्री ने चाहा कि आचार्य भिक्षु का दार्शनिक रूप जनता के समक्ष आये । युवाचार्य महाप्रज्ञ ने इस चाह को पकड़ा और उसे इस पुस्तक के माध्यम से क्रियान्वित किया । प्रस्तुत कृति में सात अध्याय हैं। इनमें आचार्य भिक्षु की संक्षिप्त जीवन-कथा, सिद्धांत, विचार और मन्तव्यों का अत्यंत गहराई से प्रतिपादन हुआ है । आचार्य भिक्षु बहुत पढ़े लिखे नहीं थे, पर उनकी सहज मेधा-शक्ति इतनी प्रखर थी और उनका प्रातिभज्ञान (इन्ट्यूशन) इतना गहरा था कि उन्होने जो विचार दिये, जो सूत्ररूप में बातें कहीं, उन पर बड़े-बड़े भाष्य लिखे जा सकते हैं। उनके विचारों में इतनी गहराई है कि बड़े-बड़े पंडित भी उसकी थाह नहीं पा सकते । वे मौलिक चिन्तन देने वाले आचार्य थे। 'भिक्षु विचार-दर्शन' को पढ़ने वाला तेरापंथ दर्शन का पूरा अवबोध पा लेता है । इसमें 'प्रतिध्वनि', 'साध्य साधन के विविध पहल' आदि शीर्षकों में आधुनिक विचारकों से आचार्य भिक्षु के विचारों और सिद्धांतों की तुलना भी है। विषयों का प्रस्तुतीकरण मौलिक सूझबूझ के साथ हुआ है। प्रत्येक संघ किसी न किसी आधार पर खड़ा होता है । जिसका आधार दृढ़ और अविचल होता है, वह संघ विकास कर आगे बढ़ जाता है। जिसकी आधारभित्ति तात्कालिक तत्त्वों पर अवल बित होती है, वह बिखर जाता है । तेरापंथ की नींव मर्यादा, अनुशासन और संयम पर टिकी है । यही कारण है कि यह जनता के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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