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________________ व्यक्ति और विचार ५१ वृत्त अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी शैली उपन्यास के ढंग की होने से इसका पठन रुचि को बांधे रखता है । इसमें शताधिक घटनाओं का समावेश है और प्रत्येक घटना या तथ्य के प्रामाणिक स्रोतों का परिशिष्ट भी साथ में है। भगवान् महावीर को समझने में यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। महावीर क्या थे ? भगवान महावीर का जीवन अनेक आयामों में विकसित हुआ था। उनके दीर्घ तपस्वी जीवन और ध्यानी जीवन से हम परिचित हैं । पर वे अभय के अनन्य साधक और पराक्रम के पुजारी भी थे। प्रस्तुत पुस्तक में १८ निबंध हैं। उनमें से नौ निबंधों में महावीर के नौ महान् गुणों का विश्लेषण किया गया है। इनके माध्यम से महावीर को अहिंसक, ध्यानयोगी अनुशास्ता, ज्योतिर्मय, उपदेष्टा, समयज्ञ, पराक्रमी, कर्मयोगी, साम्ययोगीइन रूपों में अभिव्यक्त किया है। शेष नौ निबंधों में महावीर के सिद्धातों और तत्कालीन परंपराओं तथा अन्यान्य चर्चाओं का स्पर्श किया गया है । यह लघु काय कृति अपने में विराट् व्यक्तित्व को समेटे हुए है । हजारों पृष्ठों में जो बात नहीं समझाई जा सकती वह इस पुस्तक के ६० पृष्ठों में समभा दी गई है। यह पुस्तक भारत सरकार ने अहिन्दी प्रान्तों में भी वितरित की है। महावीर को विभिन्न कोणों से समझने में यह पुस्तक बेजोड़ है । महावीर : जीवन और सिद्धान्त । प्रस्तुत कृति में २३ निबंध संग्रहीत हैं। उनमें से कुछेक महावीर के पराक्रमी जीवन का विभिन्न पहलुओं से प्रतिपादन प्रस्तुत करते हैं और कुछेक निबंध उनके सिद्धातों को नवीन परिप्रेक्ष्य में अभिव्यक्त करते हैं । जैन श्रावकों के कर्तव्य-बोध और जैन शासन की तेजस्विता को पुन: प्रस्थापित करने के लिए इसमें उपाय निर्दिष्ट हैं । पर्युषण और संवत्सरी से संबंधित चार निबंध इनकी महत्ता को सैद्धान्तिक और वैचारिक धरातल देते हैं। पूरी पूस्तक महावीर और जैन शासन की परिक्रमा किए चलती है। इसमें उपासक जीवन का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत हुआ है । जैन धर्म और महात्मा गांधी शीर्षक निबंध में जैन धर्म के परिप्रेक्ष्य में गांधी के कुछेक विशिष्ट गुणों का वर्णन है। जैन धर्म और महात्मा गांधी के संबंध की बात आती है तो अहिंसा, समता, कष्टसहिष्णुता-ये उनके संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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