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________________ श्रमण महावीर भगवान् महावीर मानव के रूप में अवतरित हुए तथा अपने पुरुषार्थ और साधना के तेज से अतिमानव बनकर जन-जन के आराध्य बन गए। उनके विराट् व्यक्तित्व एवं जीवन को शब्दों में बांधना अत्यंत दुरूह है। स्वयं लेखक की दृष्टि में 'उनका कर्म राज्य-मर्यादा के साथ नहीं जुड़ा, इसलिए राज्य के संदर्भ में होने वाला उनके जीवन का अध्याय विस्तृत नहीं बना। उनका कार्यक्रम रहा अन्तर् जगत् । यह अध्याय विशद है और इससे उनके जीवन की कथा भी विशद बन गई।' भगवान महावीर राजकीय वैभव में पले, पर उससे अलिप्त रहे । साधना काल के १२ वर्षों में एक ओर अनेक कष्ट सहे तो दूसरी ओर इन्द्र द्वारा सम्मान भी प्राप्त किया, किंतु वे इन सबसे ऊपर उठकर वीतराग बन गए। वे जिस मार्ग पर चले वह राजमार्ग बन गया और हजारों-लाखों व्यक्ति उनके चरण-चिह्नों पर चलकर स्वयं महावीर बन गए। उनकी धर्मदेशना जीवन-यात्रा का पाथेय बन गई। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् पौराणिक युग आया और उसमें महापुरुष की जीवन घटनाओं के साथ चमत्कार जोड़े गए। महावीर के जीवन-वृत्त के साथ भी चमत्कारपूर्ण घटनाएं जुड़ीं। उनके परीषहसहन के साथ भी अतिशयोक्तिपूर्ण बातें जुड़ीं। प्रस्तुत जीवन-कथा में उन चामत्कारिक घटनाओं का मानवीकरण किया गया है। इससे भगवान् के जीवन की महिमा कम नहीं हुई है, प्रत्युत् उनके पौरुष की दीपशिखा और अधिक तेजस्वी हुई है। मनीषी लेखक प्रस्तुति में अपनी कठिनाई प्रस्तुत करते हए कहते हैं कि भगवान् महावीर की जीवनी लिखने में मेरे सामने मुख्य तीन कठिनाइयां थीं १. जीवन-वृत्त के प्रामाणिक स्रोतों की खोज २. दिगम्बर और श्वेताम्बर परंपरा-भेदों के सामंजस्य की खोज ३. तटस्थ मूल्यांकन इन तीनों दृष्टियों को ध्यान में रखकर लेखक ने भगवान् महावीर की छोटी-बड़ी सभी घटनाओं का समावेश किया है । उनके बीज यत्र-तत्र "बिखरे हुए मिलते हैं । वे सब प्रामाणिक स्रोतों से गृहीत हैं । कल्पना का सूत्र उनमें इतना-सा है कि कल्पना घटना को सुबोध और सुगम बना दे। आज तक की प्रकाशित महावीर की जीवन-कथाओं में यह जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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