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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
प्रेक्षाध्यान और कायोत्सर्ग
प्रेक्षाध्यान की चर्चा आज सर्वत्र है। सहस्रों व्यक्तियों ने इसके अभ्यास से अनेक समस्याओं का अन्त किया है । ध्यान अध्यात्म का सशक्त घटक है। प्रेक्षाध्यान शब्द नया है, पर अर्थ पुराना है, शास्त्रों से अनुमोदित है। यह पद्धति आचारांग आदि में बीजरूप में प्रतिपादित है । इसकी नये रूप में प्रस्तुति बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है । विज्ञान के संदर्भ में इसको समझना बहुत सरल हो गया है। इस ध्यान पद्धति के अनेक आयाम हैं --- श्वास-प्रेक्षा, शरीर-प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा, लेश्याध्यान, कायोत्सर्ग आदि ।
कायोत्सर्ग इसी का एक घटक है। यह शारीरिक, मानसिक और चैतसिक स्वास्थ्य का अचूक उपाय है। इसकी व्यवस्थित पद्धति प्रेक्षाध्यान की ही नियोजिका है । ध्यान और कायोत्सर्ग को हम बांट नहीं सकते। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। तनाव से ग्रस्त व्यक्ति के लिए अचूक औषधि के रूप में कायोत्सर्ग का वर्णन जहां सामान्य जनों के लिए हुआ है, वहां कायोत्सर्ग द्वारा भेद-विज्ञान (आत्मा और शरीर की भिन्नता) का वर्णन आध्यात्मिक जनों के लिए हुआ है। अतः यह पुस्तक सर्वोपयोगी सिद्ध हुई है।
ध्यान और कायोत्सर्ग
ध्यान का अर्थ है-मन को एक शब्द, विषय या वस्तु पर एकाग्र करना। यह तभी संभव है जब कायोत्सर्ग का अभ्यास परिपक्व हो जाता है। कायोत्सर्ग का अर्थ है-काया का व्युत्सर्ग । आज की भाषा में इसे शिथिलीकरण या रिलेक्शेसन कहते हैं। इसमें काया के उत्सर्ग के साथ आत्म-चैतन्य को जागृति का सतत आभास बना रहता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। युवाचार्यश्री ने इन दोनों पर बहुत लिखा है। इस विषय में अनेक योग-ग्रन्थ प्रकाश में आ चुके हैं । इस लघु पुस्तिका में इन दोनों विषयों का सैद्धांतिक
और व्यावहारिक पक्ष उजागर किया गया है तथा इनके लाभ का भी स्पष्ट उल्लेख है। विज्ञान के संदर्भ में इन दोनों की उपयोगिता भी इस पुस्तिका में समझाई गई है । ध्यान और कायोत्सर्ग की प्राथमिक जानकारी के लिए यह पुस्तिका बहुत उपयोगी है।
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