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प्रेक्षा साहित्य
इस प्रकार यह पुस्तक चैतन्य- केन्द्र सम्बन्धी पूरी अवधारणा प्रस्तुत करती है और उन-उन केन्द्रों की शरीर में अवस्थिति कहां है, वह चित्रांकन से स्पष्ट होती है ।
प्रेक्षा ध्यान : लेश्या ध्यान
आदमी द्वन्द्व में जीता है । वह कभी अच्छा कार्य करता है और कभी बुरा । वह कभी सत् चिंतन करता है और कभी असत् । उसमें भाव क्यों बदलते हैं ? वह स्थिर क्यों नहीं रहता ? मनोविज्ञान के पास इसके पर्याप्त उत्तर नहीं हैं । लेश्या सिद्धांत के आधार पर इन प्रश्नों का सही समाधान दिया जा सकता है । लेश्या ध्यान रूपान्तरण की प्रक्रिया है । व्यक्तित्व का रूपान्तरण लेश्या की चेतना के स्तर पर ही हो सकता है । जैन दर्शन में छह लेश्याएं मान्य हैं - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या । प्रथम तीन लेश्याएं अप्रशस्त और मलिन हैं, शेष तीन प्रशस्त और प्रकाशमय हैं । जिन व्यक्तियों में अप्रशस्त लेश्याओं के स्पंदन जागते हैं, उन व्यक्तियों में हिंसा, ईर्ष्या, घृणा, माया, भय आदि के भाव जागते हैं और जिन व्यक्तियों में तीन प्रशस्त लेश्याओं के स्पंदन जागते हैं उन व्यक्तियों में क्षमा, शान्ति, मैत्री, अभय आदि के भाव जागते हैं । लेश्या ध्यान के माध्यम से लेश्याओं में परिवर्तन किया जा सकता है । इस परिवर्तन से व्यक्ति का जीवन अच्छा बन सकता है । लेश्याओं को बदले बिना जीवन नहीं
.बदला जा सकता ।
प्रस्तुत कृति के पांच विभाग हैं
१. लेश्या क्या है ? आध्यात्मिक दृष्टिकोण
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२. लेश्या क्या है ? वैज्ञानिक दृष्टिकोण
३. लेश्या ध्यान क्यों ?
४. लेश्या ध्यान की विधि ।
५. लेश्या ध्यान की निष्पत्ति ।
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दूसरे विभाग में आभामंडल (ओरा ) के विषय में अनेक रहस्यों की - जानकारी के साथ-साथ रंग - चिकित्सा ( कलर थेरापी) की चर्चा प्राप्त है । विभिन्न रंगों के क्या-क्या गुण-दोष हैं, यह वहां चर्चित है ।
जो व्यक्ति लेश्या ध्यान में प्रवेश कर जाता है, उसमें चित्त की प्रसन्नता, कर्मतंत्र और भावतंत्र का शोधन, पदार्थ - प्रतिबद्धता से मुक्ति, आत्म-साक्षात्कार आदि घटित होने लगते हैं ।
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