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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
२. शरीर क्या है : आध्यात्मिक दृष्टिकोण । ३. शरीर-प्रेक्षा क्यों ? ४. शरीर-प्रेक्षा की विधि । ५. शरीर-प्रेक्षा की निष्पत्ति ।
जो व्यक्ति शरीर-प्रेक्षा का निरन्तर अभ्यास करता है उसके ये निष्पत्तियां सहज हो जाती हैं-प्राण का संतुलन, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास, स्वास्थ्य की उपलब्धि, जागरूकता का विकास, प्रतिस्रोतगामिता, रूपान्तरण, शरीर का कायाकल्प ।
इस लघु पुस्तिका में दिए गए चित्रांकनों से शरीर की संरचना को समझने में सुविधा होती है । स्वास्थ्य की कामना करने वाले व्यक्ति के लिए यह अवश्य पठनीय है।
प्रेक्षाध्यान : चैतन्य-केन्द्र-प्रक्षा
प्रेक्षाध्यान ध्यान की एक परिष्कृत पद्धति है। इसमें प्राचीन द्रष्टाओं से प्राप्त अवबोध तथा आधुनिक विज्ञान के तत्त्वों का समावेश है। इस प्रेक्षा पद्धति के मुख्य घटक हैं-. श्वास-प्रेक्षा, शरीर-प्रेक्षा, समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा, चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा, लेश्या ध्यान और कायोत्सर्ग ।
चैतन्य केन्द्र के बारे में नवीन जानकारी देते हुए लेखक कहते हैंवृत्तियों और वासनाओं का उद्भव मस्तिष्क में से नहीं, अन्तःस्रावी ग्रन्थितंत्र के द्वारा होता है। ये वृत्तियां व्यक्ति में केवल इच्छा या कामना ही पैदा नहीं करतीं, उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तदनुरूप प्रवृत्ति की भी मांग करती हैं । सारे आवेग, जो भावतंत्र को संचालित करते हैं, वे अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों से पैदा होते हैं । अन्तःस्रावी ग्रन्थियां ही हमारे चैतन्यकेन्द्र के संवादी स्थान हैं।
शरीर में ऐसे स्थान अनेक हैं जहां आत्म-प्रदेशों का समवाय अधिक है, पुंजीभूत है । इन्हें चैतन्य केन्द्र कहा जाता है । हठयोग में इन्हें चक्र, विज्ञान में साइकिक सेन्टर्स और प्रेक्षाध्यान पद्धति में चैतन्य केन्द्र कहा गया है। ये एक नहीं, अनेक हैं। इनके जागरण से विशिष्ट शक्तियां उपलब्ध होती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के पांच परिच्छेद हैं -- १. चैतन्य-केन्द्र : वैज्ञानिक स्वरूप । २. चैतन्य केन्द्र : आध्यात्मिक स्वरूप । ३. चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा क्यों ? ४. चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा-विधि । ५. चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा की निष्पत्ति ।
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