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प्रेक्षा साहित्य
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कल्पित नहीं, परन्तु अनुभूत और विज्ञान-सम्मत हैं ।
___ इसका स्वरूप सरल और सुबोध है। इसकी स्वरूप-मीमांसा में अनेक तथ्य अभिव्यक्त हुए हैं। पुस्तक का परिशीलन करने से पूरी पद्धति का अवबोध हो जाता है।
प्रेक्षा ध्यान : श्वास-प्रेक्षा
यह जीवन विज्ञान ग्रन्थमाला का छठा पुष्प है। इसमें श्वास-प्रेक्षा से संबंधित सिद्धान्त और प्रयोगों की विशद चर्चा है। इसके पांच अध्याय हैं
१. श्वास क्या है ? २. श्वास का आलंबन क्यों ? ३. दीर्घश्वास की विधि ४. श्वास-प्रेक्षा के प्रकार ५. श्यास-प्रेक्षा की निष्पत्तियां ।
श्वास-प्रेक्षा प्रेक्षा ध्यान पद्धति का मुख्य घटक है। साधक प्रारंभ में इसी के माध्यम से ध्यान में प्रवेश करता है और जब वह अपने श्वास को जान लेता है, तब उसका मन एकाग्र बनने लगता है । जो श्वास पर नियंत्रण नहीं करता, वह ध्यान में आगे नहीं बढ़ पाता।
यह पुस्तक प्रत्येक ध्यानाभ्यासी के लिए अवश्य पठनीय और मननीय
प्रेक्षा-ध्यान : शरीर-प्रेक्षा
प्रेक्षा ध्यान पद्धति का दूसरा चरण है शरीर-प्रेक्षा।
जब साधक श्वास-प्रेक्षा कर चुकता है तब वह शरीर-प्रेक्षा में प्रवेश करता है। जितनी सूक्ष्मता और गहराई से वह अपने शरीर में निरंतर होने वाले प्रकंपनों को पकड़ने में सक्षम होता है, उतना ही वह एकाग्रता में आगे बढ़ता है और उनके रहस्यों को जान जाता है।
प्रश्न होता है, हम शरीर में क्या देखें ? शरीर में बहुत कुछ है देखने के लिए । शरीर के प्रकंपनों को देखना, उसके भीतर प्रवेश कर भीतरी प्रकंपनों को देखना, मन को बाहर से भीतर में ले जाने की प्रक्रिया है। शरीर में होने वाले संवेदनों को देखने का तासर्य है चैतन्य को देखना, अनुभव करना, आत्मा को देखना, अनुभव करना ।
प्रस्तुत कृति के पांच विभाग हैं:१. शरीर क्या है : वैज्ञानिक दृष्टिकोण
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