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________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण पाहार और अध्यात्म योग या ध्यान-साधना में आहार का विवेक बहुत अपेक्षित है । आहार के बिना जीवन नहीं टिक सकता। जीवन के बिना ज्ञान, दर्शन और आचार की आराधना नहीं हो सकती । और इस रत्नत्रयी के बिना बंधन-मुक्ति नहीं हो सकती। इसलिए आहार की उपेक्षा नहीं की जा सकती। आहार का विमर्श पांच दृष्टिकोणों से किया जाता है १. शारीरिक स्वास्थ्य २. मानसिक स्वास्थ्य ३. अहिंसा की आराधना ४. ब्रह्मचर्य की साधना ५. चित्तवृत्ति का परिमार्जन युवाचार्य श्री ने इन सभी दृष्टियों से आहार का वैज्ञानिक संदर्भ में विमर्श प्रस्तुत किया है। वर्तमान के शरीरशास्त्री और पोषणशास्त्रियों के विचार भी इसमें संगहीत हैं और उनके द्वारा निर्दिष्ट आहार सामग्री का अध्यात्म विकास में क्या योग होता है, इसका महत्त्वपूर्ण विवेचन यहां प्राप्त आहार केवल शरीर को ही प्रभावित नहीं करता, वह व्यक्ति के मन को भी प्रभावित करता है । इसलिए अध्यात्म के आचार्यों ने भी इस पर बहुत विचार किया है। प्रस्तुत पुस्तक के २३ निबंधों में इस दृष्टि से बहुत ही सरस, मौलिक और नए तथ्यों का उद्घाटन हुआ है। प्रेक्षा ध्यान : प्राधार और स्वरूप प्रेक्षाध्यान प्राचीन जैन साधना पद्धति का नए परिवेश में प्रस्तुतीकरण है। इसका मूल आधार है-जैन आगम, उसके व्याख्याग्रन्थ और ध्यान विषयक उत्तरवर्ती साहित्य । आगम ग्रन्थों में ध्यान के विकीर्ण बीज प्राप्त होते हैं। उन्हीं बीजों को संकलित कर ध्यान की एक नई पद्धति आविष्कृत की गई, जिसे 'प्रेक्षाध्यान' का नामकरण वि० सं० २०३२ जयपुर चातुर्मास में दिया गया। इसके द्वारा श्वास, शरीर, इन्द्रिय और मन को साधा जाता है और फिर इसकी विभिन्न भूमिकाओं को पार करता हुआ साधक ध्यान की उच्च अवस्था का स्पर्श कर लेता है। इस ध्यान पद्धति का स्वरूप पूर्णत: वैज्ञानिक है और आज के विज्ञान को आत्मसात् करती हुई यह पद्धति आगे बढ़ती है। इसकी सारी अवधारणाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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