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________________ प्रेक्षा साहित्य ४३ कांच में मनुष्य अपने आपको ही देखता है । कब किसने कांच की निर्मलता को देखा ! मेरी दृष्टि है-हम अपने निर्मल चैतन्य को देखने का प्रयत्न करें। उसमें जो प्रतिबिम्ब होगा, वह वास्तविक होगा। ___ सर्जन का मूल मंत्र है - सतत जलते रहना, कभी नहीं बुझना । वही सृष्टि प्रिय हो सकती है जो नए-नए उन्मेष पैदा कर सके, उन्हें संभाल सके, उनका संरक्षण और पोषण कर सके। प्रस्तुत कृति में दृष्टि और सृष्टि को विविध आयामों में समझाया गया है । इसमें सैंतीस निबंध हैं। उनमें प्रथम पांच श्रमण सूत्र की व्याख्या से सम्बन्धित हैं। विभिन्न विषयों का प्रतिपादन करने वाले शेष निबंध व्यक्ति की दृष्टि को परिमार्जित कर उसे देखने का नया आयाम देते हैं और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करते है । बहुविध विषयों को अपने आप में समेटे हुए यह पुस्तक एक विशिष्ट कृति के रूप में प्रस्तुत हुई है । चंचलता का चौराहा चंचलता के तीन प्रकार हैं-स्मृति की चंचलता, कल्पना की चंचलता और विचार की चंचलता । इनका न होना स्थिरता है । इस पुस्तक में आठ निबंध हैं जिनमें मानसिक स्वास्थ्य के छह पेरामीटर, ध्यान एक पुरुषार्थ आदि निबंध वैचारिक स्तर पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । वृत्तियों का वर्तुल क्या है, और उससे छुटकारा पाने का उपाय क्या है, यह सब इस लघु पुस्तक में उत्तरित है । युवाचार्य श्री द्वारा प्रदत्त विभिन्न प्रवचनों से इस लघु पुस्तिका की सामग्री संकलित है । चंचलता और स्थिरता को समझने के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी है। ऊर्जा की यात्रा यह कृति युवाचार्य महाप्रज्ञ की योग-ध्यान विषयक कृतियों से संकलित है । युवाचार्यश्री ऊर्जा के विषय में यदा-कदा, यत्र-तत्र प्रवचन देते रहे हैं, लिखते रहे हैं । उनका एकत्रीकरण इस लघु कृति में है । इसमें बारह निबंध हैं। प्राय: सभी निबंध ऊर्जा के विभिन्न पहलू उसके संचयन के उपाय तथा ऊर्ध्वगमन की चर्चा प्रस्तुत करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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