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________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण उपलब्धियां प्राप्त हो सकती हैं। प्रस्तुत कृति में शक्ति के इन तीनों आयामों की चर्चा है और कुछ रहस्य-सूत्र भी हैं । इसके पारायण से मनुष्य शक्ति-जागरण की दिशा में प्रस्थान कर अपने आपको शक्ति-सम्पन्न करने में सक्षम हो सकता है। शक्तिसम्पन्नता ही व्यक्ति की क्रियाशीलता को उजागर करती है और तब वह प्रज्वलित आग की भांति दीप्त जीवन जीने में सक्षम होता है । समस्या का समाधान यह द्वन्द्व की दुनिया है। यहां समस्या भी है और समाधान भी है। ऐसी एक भी समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो सके। समस्याएं अनेक प्रकार की होती हैं। आदमी वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं से घिरा रहता है। वह यदि इनका समाधान बाहर ढूंढता है तो असफल होता है । समस्या का सही समाधान अध्यात्म में है। प्रस्तुत कृति में यह बात उभर कर सामने आती है कि मानसिक और व्यावहारिक समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक ही हो सकता है। शेष साधन समाधान के साथ-साथ नई-नई समस्याएं भी प्रस्तुत कर देते हैं । समस्या का स्थायी समाधान लेखक ने अपनी प्रस्तुति में बहुत सटीक शब्दों में इस प्रकार अभिव्यक्त किया है--'हम परिणाम को समाधान न मानें किन्तु उस प्रवृत्ति को समाधान मानें जिससे परिणाम का सृजन होता है । यह मूल तक पहुंचना ही आध्यात्मिकता है। मानसिक और व्यावहारिक समस्या का समाधान आध्यात्मिकता ही हो सकता है । इस सत्य को उजागर करने के लिए ही हम इस पुस्तक को पढ़ें। ___ इस लघु पुस्तक में समस्या के समाधान के अनेक मनोवैज्ञानिक पहलुओं का स्पर्श भी हुआ है जो आधुनिक युग की नई समस्याओं को समाहित करने में समर्थ हैं। मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि प्रस्तुत पुस्तक में दर्शन और सर्जन का विमर्श प्राप्त है। व्यक्ति की जैसी दृष्टि होती है, उसी के अनुसार सृष्टि की संरचना हो जाती है । मिथ्यादृष्टि सुख में भी दु:ख का सर्जन कर लेती है तथा सम्यक्दृष्टि दुःख में भी सुख देखती है। दृष्टि और सृष्टि का विश्लेषण अनुभूति की भाषा में प्रस्तुत करते हुए लेखक कहते हैं --"जिसे देखना चाहिए वहां दृष्टि नहीं जाती। जिसे नहीं देखना चाहिए, वहां देखने का प्रयत्न होता है। यह कैसा विपर्यय ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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