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________________ प्रेक्षा साहित्य ४१ स्वयं लेखक प्रेक्षा की उपादेयता बताते हुए कहते हैं—'साधना का मुख्य सूत्र है---प्रेक्षा । वह समाधि का आदि-बिन्दु भी है और चरम-बिन्दु भी । आदि-बिन्दु में चित्त की निर्मलता का दर्शन होता है और चरम-बिन्दु में चेतना सभी प्रभावों से मुक्त हो जाती है। दूसरे खंड के दस निबंधों में समाधि के विविध पक्षों का शरीरविज्ञान और मनोविज्ञान के संदर्भ में विश्लेषण हुआ है तथा उसकी प्राप्ति के अनेक उपायों का भी निर्देश है। समाधि को निष्पत्ति प्रस्तुत कृति 'अप्पाणं सरणं गच्छामि' पुस्तक का ही एक अध्याय है। इसके दो खंड हैं । प्रथम खंड में १० निबंधों का संकलन है। 'समाधि की निष्पत्ति चित्त शुद्धि है' -इस बात को प्रेक्षा ध्यान के श्वास-प्रेक्षा आदि विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से स्पष्ट किया है । तथा अन्त में शुद्ध चैतन्य के अनुभव का उल्लेख है। द्वितीय खंड में ६ प्रवचन संकलित हैं, जिनमें अनेक सामयिक समस्याओं का समाधान तथा निर्द्वन्द्व होकर आत्मा की शरण में जाने का संकेत है। कृति गंभीर एवं गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन करने वाली है। अत: भाषा भी उदाहरण प्रधान न होकर तथ्यात्मक है । __ शक्ति की साधना प्रत्येक आत्मा में अनन्त शक्ति है, यह जैन-दर्शन का मान्य अभ्युपगम है । जब इस शक्ति का साक्षात्कार होता है तब व्यक्ति अपने अभीष्ट को पा लेता है। जब व्यक्ति वीतराग बनता है तब इस शक्ति का स्फोट होता है और अनन्त चतुष्टयी का अनुभव होने लगता है। अनन्त शक्ति का एक अंश मात्र ही जागृत रहता है और शेष शक्ति सुषुप्ति में रहती है। इस स्थिति में जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। इसलिए आवश्यक है कि शक्ति का जागरण हो, सुषुप्त शक्ति जागृत हो। तीन बातें हैं --- शक्ति को जगाना, शक्ति को संभालना और शक्ति का सही उपयोग करना। शक्ति के जागने से घटना भी घटित हो सकती है और दुर्घटना भी घटित हो सकती है। इसलिए शक्ति-जागरण के साथ-साथ उसे संभालने का विवेक भी होना चाहिए। जो व्यक्ति शक्ति को संभाल लेता है, उससे दुर्घटना घटित नहीं होती। इसके बाद शक्ति के सही उपयोग का ज्ञान भी आवश्यक होता है। जब ये तीनों बातें होती हैं तब शक्ति से अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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