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६. प्रामाणिकता
१०. करुणा
११. सह-अस्तित्व १२. अनासक्ति
महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
१३. सहिष्णुता
१४. मृदुता
१५. अभय
१६. आत्मानुशासन
इन सोलह मूल्यों के सिद्धांत-बोध से विद्यार्थी अपनी अस्मिता को पहचान सके और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित हो सके, यह कम संभव है । इसके लिए सिद्धान्त और प्रयोग दोनों का समन्वय आवश्यक है । यह समन्वय जीवन-विज्ञान की शिक्षा पद्धति में प्रस्तुत है । जीवन - विज्ञान की पृष्ठभूमि में व्यक्ति और समाज — दोनों को संतुलित मूल्य प्राप्त है ।
नई शिक्षा नीति के परिपार्श्व में शिक्षा के आमूलचूल परिवर्तन के स्वर उभर रहे हैं । केवल पढ़ाने की प्रणाली बदल देने से कुछ नहीं होगा । शिक्षा के स्वरूप को बदलना होगा ।
इस पुस्तक में जीवन विज्ञान को मुख्य तीन संदर्भों में प्रस्तुत किया गया है
१. जीवन - विज्ञान : शिक्षा के संदर्भ में ।
२. जीवन - विज्ञान : व्यापक संदर्भ में ।
३. जीवन-विज्ञान : समाज के संदर्भ में ।
प्रथम खंड के ६ निबंधों में जीवन के साथ शिक्षा का अनुबंध कैसे हो सकता है, इसका उल्लेख है । दूसरे खंड में ११ निबंधों का संकलन है जिनमें जीवन-विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श किया है, जैसे- 'सा विद्या या विमुक्तये' 'विद्यार्थी जीवन और ध्यान', 'संवेग नियंत्रण की पद्धति' आदि । तृतीय खंड के ६ प्रवचनों में समाज के संदर्भ में जीवन-विज्ञान की उपयोगिता को व्याख्यायित किया गया है । जीवन-विज्ञान स्वस्थ समाज रचना का संकल्प, समाज का आधार अहिंसा की आस्था, सामाजिक मूल्यों का आधार सत्य, आदि निबंध इसी सत्य को निरूपित करते हैं ।
समाधि की खोज
'समाधि की खोज', यह बृहद् ग्रन्थ 'अप्पाणं सरणं गच्छामि' का ही एक अध्याय है । हर व्यक्ति समाधि चाहता है, किन्तु कार्य असमाधि पैदा करने जैसा करता है । प्रस्तुत पुस्तक समाधि की खोज की दिशा में यात्रायित यायावरों के लिए पथप्रदर्शिका का कार्य करती है ।
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इसके दो खंड हैं । प्रथम खंड 'समाधि की दिशा में प्रस्थान' इस शीर्षक के अन्तर्गत नौ निबन्धों में प्रेक्षा ध्यान के विविध पहलुओं का रोचक, सरस और गंभीर विवेचन हुआ है ।
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