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________________ प्रेक्षा साहित्य ३७ सोया मन जग जाए आचार्यश्री तुलसी ने समाज को अनेक घोष दिए। जैसे - 'निज पर शासन, फिर अनुशासन', 'संयम ही जीवन है' आदि-आदि। उन घोषों से सामाजिक चेतना में नई प्राणशक्ति का संचार हुआ। अमृतमहोत्सव के अवसर पर उन्होंने एक घोष दिया---'नया सबेरा आए, सोया मन जग जाए।' इस घोष ने जन-जन के मन को झकझोरा है। यही घोष इस कृति का शीर्षक बना है। मन सोता भी है और जागता भी है। हर मनुष्य चाहता है कि वह सुषुप्त न रहे, जागृत रहे । समय-समय पर मानव का पुरुषार्थ भी इस दिशा में होता रहा है। फिर भी मन सोने को अधिक पसंद करता है। प्रस्तुत पुस्तक में उस सोए मन को जगाने के सूत्र उपलब्ध हैं । इसमें पांच अध्यायों में विभक्त चौतीस निबंध हैं । वे अध्याय इस प्रकार हैं--- १. दृष्टि : सृष्टि ४. चरैवेति चरैवेति २. युद्धस्व ५. विवेक ३. आत्मा की परिधि प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम खंड के सात लेखों में पांच लेख प्रश्नात्मक होने से सहज ही पाठक का ध्यान आकर्षित करते हैं। जैसे-'क्या दुःख को कम किया जा सकता है' ? 'क्या मू को कम किया जा सकता है' ? आदि। दूसरे खंड 'युद्धस्व' में अभिनव युद्ध की चर्चा है । युद्ध बाहरी शत्रुओं से नहीं, किंतु आंतरिक शत्रु---कामवृत्ति, क्रोध और अहंकार आदि के साथ कैसे किया जाए, उसका सुन्दर और हृदयग्राही विदलेषण हुआ है। तृतीय खंड के आठ निबन्धों में अनेक रोचक एवं नवीन विषयों का विवेचन हुआ है। जैसे-'समस्या और दुःख एक नहीं दो हैं', 'बहुत दूरी है आवश्यकता और आसक्ति में' आदि-आदि । चतुर्थ खंड के लेख विकास के अनेक सोपानों की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं, जैसे ----आत्मतुला की चेतना का विकास, समता की चेतना का विकास आदि । पंचम खंड लघुकाय होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक शीर्षक प्रश्न के साथ प्रारम्भ होता है, जो हर पाठक का ध्यान खींचता है । जैसे-- क्या धार्मिक होना जरूरी है ? क्या कष्ट सहना जरूरी है ? आदि-आदि । इस प्रकार इस पुस्तक का परिशीलन कर ध्यान के माध्यम से हम सत्य का अवबोध प्राप्त कर सकते हैं तथा मन को जगाकर महान् आत्मा बनने का स्वप्न पूरा कर सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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