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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
महावीर की साधना का रहस्य
भगवान् महावीर ने कठोर साधनामय जीवन जीया । उनकी साधना रूढ़ नहीं, किंतु प्रायोगिक थी। उनकी साधना के अनेक सूत्र आगमों में विकीर्ण रूप से मिलते हैं, जिन्हें सामान्य जनता द्वारा ग्रहण करना अत्यंत कठिन है। युवाचार्य महाप्रज्ञ ने उन साधना-सूत्रों के रहस्यों को समझकर इस पुस्तक में उन्हें सरल भापा में निरूपित किया है।
लेखक अपनी प्रस्तुति में इस पुस्तक के रहस्य को उद्घाटित करते हुए कहते हैं--- भगवान् महावीर के युग में जो साधना-सूत्र ज्ञात थे, वे आज समग्रतया ज्ञात नहीं रहे, इसलिए वे अज्ञात हैं । साधना के कुछ सूत्र व्यक्तिशः ज्ञापनीय होते हैं, इसलिए वे सार्वजनिक रूप में ज्ञात नहीं हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में उन साधना-सूत्रों का स्पर्श करने का प्रयत्न मात्र है जो अज्ञात से ज्ञात के तल पर आ गए हैं और सबके लिए उपयोगी हैं ।
जैन ध्यान पद्धति के विषय में भिन्न-भिन्न विचार चल रहे हैं । कुछ विद्वान् मानते हैं जैनों की अपनी कोई मौलिक ध्यान पद्धति नहीं रही। कुछ लोग मानते हैं कि जैन साधना पद्धति में ध्यान नहीं, तपोयोग का प्राबल्य रहा है। सन् १९७४ में दिल्ली में साह शांतिप्रसादजी जैन ने आचार्यश्री तुलसी के समक्ष ये विचार रखे और इनकी यथार्थता जाननी चाही। उस समय चार गोष्ठियों में जैन ध्यान-पद्धति का ऐतिहासिक विश्लेषण किया गया । वे सारे प्रवचन इस पुस्तक में संकलित हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्येता महावीर की साधना को समझने के साथ-साथ उसके परिपार्श्व में बिखरे अनेक सत्यों का भी साक्षात्कार करते चलेंगे। प्रस्तुत पुस्तक के चार अध्याय हैं
१. आत्मा का जागरण २. आत्मा का साक्षात्कार ३. समाधि ४. जैन परम्परा में ध्यानः ऐतिहासिक विश्लेषण ।
साधना के क्षेत्र में शरीर, श्वास, मन और इन्द्रिय को साधना जरूरी है। भगवान् महावीर ने इनको साधा था और यत्र-तत्र उनके मर्मों का उद्घ टन भी किया था। उन कुछेक मर्मों को प्रथम अध्याय के १३ निबंधों में प्रस्तुत किया गया है।
दूससे अध्याय के छह प्रवचनों में ध्यान एवं उससे संबंधित अनेक तथ्यों का विवेचन हुआ है।
___ समाधि नामक तीसरे अध्याय में सामायिक, विनय, ज्ञान, तप, दर्शन एवं चारित्र-इन छह समाधियों का आधुनिक भाषा में निरूपण है।
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