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प्रेक्षा साहित्य
का इसमें निर्देश है ।
चौथे खंड में 'जागरूकता' के विविध पहलुओं का मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विवेचन है । आज के प्रमादी, आलसी और दिशाहीन मानव के लिए यह खंड पथ - दर्शक का काम करता है । इस प्रकार व्यक्तित्व निर्माण के साथसाथ जीवन को समग्रता से कैसे जीया जाये, इसका समाधान यह ग्रन्थ देता है |
मन का कायाकल्प
मन के टूटने, बीमार होने और बूढा होने के तीन कारण हैं- शंका, कांक्षा और विचिकित्सा । तेरापंथ के चौथे आचार्य श्रीमज्जाचार्य ने इन्हीं तीन कारणों का उल्लेख किया है । मनुष्य सदा सशंकित रहता है । वह कहीं विश्वस्त नहीं होता। चाहे पिता-पुत्र को लें, पति-पत्नी को देखें, भाई-भाई को देखें या स्वामी सेवक को देखें, सभी एक दूसरे के प्रति शंकालु रहते हैं । यह आशंका मन को तोड़ देती है ।
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मनुष्य आकांक्षाओं का पुतला है । वह निरंतर कुछ न कुछ चाहता रहता है । उसकी चाह कभी मिटती नहीं । यह चाह उसके मन को जीर्ण-शीर्ण बना देती है । उसका जीवन तनावों से भर जाता है ।
मनुष्य की तीसरी दुर्बलता है विचिकित्सा । इसका अर्थ है फल के प्रति संदेह । इस साधना का फल मिलेगा या नहीं ? कहीं मेरी साधना निष्फल तो नहीं होगी ? इस प्रकार मन सशंकित रहता है ।
ये तीनों दुर्बलताएं मन को तोड़ की पद्धति से सांधा जा सकता है । बूढ़े यौवन दिया जा सकता है ।
डालती हैं । उस टूटे मन को 'कल्प' की
एक शब्द में कहा जा सकता है कि मन के कायाकल्प का एक मात्र साधन है - आराधना । व्यक्ति तनावों से बचे, प्रेय से श्रेय की ओर बढ़े तथा स्वास्थ्य और समाधि को प्राप्त करे । यह है आराधना विधि ।
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मन को कल्प पद्धति से नया
प्रस्तुत कृति में लोचन और आत्मलोचन - ये दो अध्याय हैं । इनमें अठारह प्रवचन निबद्ध हैं । ये सब प्रवचन जयाचार्य द्वारा निर्मित चौवीसी और आराधना के आधार पर हुए हैं ।
इस प्रकार इसमें मन के कायाकल्प के विभिन्न सूत्र प्रतिपादित हैं । उनका अनुशीलन कर व्यक्ति अपने टूटे मन को सांधकर अध्यात्म में प्रगति कर सकता है।
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