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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
इनकी साधना के आधार पर ही चेतना ऊपर उठ सकती है ।
ऊर्ध्वारोहण का एक हेतु है-चित्त को समझना तथा उसकी चंचलता को कम करना । वृत्तियों के वर्तुल में घूमने वाला कभी ऊर्वारोहण नहीं कर सकता। ऊर्ध्वारोहण के उपायों का विशद विवेचन प्रथम खंड 'चेतना का ऊर्ध्वारोहण' के अन्तर्गत सात निबंधों में हुआ है।
द्वितीय खंड 'चेतना और कर्म' के अन्तर्गत कर्म के विविध पहलुओं पर वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डाला गया है। चेतना के निम्न अवतरण में कर्म भी अपनी मुख्य भूमिका अदा करते हैं। अत: उनका स्वरूपबोध और उनसे मुक्त होने के उपायों की चर्चा 'कर्म एक रासायनिक प्रक्रिया', 'कर्म का बंध', 'कर्मवाद के अंकुश आदि १० प्रवचनों में हुई है ।
जीवन की पोथी
जीवन की शुरुआत जन्म से होती है और अंत मृत्यु से होता है । जन्म और मृत्यु के बीच का काल जीवन का क्रीड़ा-काल है। इसी काल में उस जीवन की पोथी का निर्माण होता है। इस पोथी को पढ़े बिना जीवन को समझा नहीं जा सकता। जीवन का उद्देश्य इतना ही नहीं कि सुख-सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत किया जाए, बड़ी-बड़ी भव्य अट्टालिकाएं बनाई जाएं । किंतु यह तो एक खुली पुस्तक के समान है जिसका हर अक्षर स्वार्णाक्षरों से भी लिखा जा सकता है तथा कालिमा से भी पोता जा सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक 'जीवन की पोथी' एक अद्भुत ग्रन्थ है जो जीवन को समझने और सफलता पूर्वक व्यतीत करने में मार्ग-दर्शक बनता है।
यह चार खण्डों में विभक्त है१. ईश्वर और मैत्री
३. जीवन की पोथी २. प्रश्न है प्रश्न
४. जागरूकता प्रथम खंड में ईश्वर और मैत्री के अछूते और नए पहलू विवेचित हैं। जैसे क्या मैं ईश्वर हूं ? क्या ज्ञान ईश्वर है ? मंत्री रोग के साथ, मैत्री बुढ़ापे के साथ, आदि-आदि ।
दूसरा खंड अत्यंत व्यावहारिक और उपयोगी है। प्रत्येक लेख का शीर्षक प्रश्न के साथ जुड़ा है। उस प्रश्न का समाधान भी उसी लेख में निहित है। इसके प्राय: सभी लेखों में सामान्य मनोवृत्ति से हटकर प्रतिस्रोतगामी चिंतन हुआ है । जैसे—प्रश्न है अनासक्ति का, प्रश्न है आलोचना का, प्रश्न है आदत बदलने का।
तीसरा खंड 'जीवन की पोयी' में जीवन का विवेचन है। जीवन को तेजस्वी, वर्चस्वी और ओजस्वी कैसे बनाया जा सकता है, इसके कुछेक सूत्रों
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