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________________ प्रेक्षा साहित्य २६ महत्त्वपूर्ण है। इसकी चर्चा प्रस्तुत पुस्तक में है। साथ ही साथ शक्ति-जागरण की चर्चा भी है। इसमें महामंत्र से संबन्धित अनेक पहलू चचित और विश्लेषित हैं। 'जिज्ञासितम्' शीर्षक के अन्तर्गत अनेक प्रश्नों का समाधान किया गया है और वह मंत्रों को समझने में अहंभूमिका निभा सकता है। इसमें एक विशिष्ट परिशिष्ट है जो महामंत्र के अनेक विषयों पर प्रकाश डालता है। नमस्कार महामंत्र के विभाग, पद, संपदाएं, अक्षरप्रमाण तथा वर्ण और तत्त्व का निर्देश प्राप्त है। नमस्कार महामंत्र की अभ्यास पद्धतियां अनेक हैं। उनका विस्तार से वर्णन परिशिष्ट में है। वीतराग पुरुष की पुरुषाकृति पर नौ पदों का ध्यान कैसे किया जाता है, इसका निर्देशन तथा नौ पदों के अक्षरों पर विभिन्न रंगों के ध्यान का निर्देश भी प्राप्त है। उनके चित्रों और यंत्रों से सज्जित यह परिशिष्ट नमस्कार महामंत्र की सर्वांगीण साधना-पद्धति की विशद जानकारी देता है । इस महामंत्र के बारे में अनेक पुस्तकें प्रकाश में होने पर भी वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने वाली यह पुस्तक अपने आपमें अद्भुत और प्रथम है । चेतना का ऊर्वारोहण मनुष्य विकसित चेतना वाला प्राणी है । दूसरे प्राणियों में मनुष्य जैसी विकसित चेतना नहीं होती। जिस प्रकार बीज को वृक्ष बनने में लम्बी यात्रा करनी होती है, उसी प्रकार चेतना को भी विकास के शिखर पर पहुंचने के लिए लंबी यात्रा करनी होती है। चेतना के जागरण के लिए ऊर्जा की ऊर्ध्व-यात्रा करनी होती है। इसी से ज्ञान-चेतना का विकास हो सकता है। जब ऊर्जा का प्रवाह नीचे की ओर जाता है तब काम-चेतना जागृत होती है। काम-केन्द्र की ओर प्रवाहित होने वाली चेतना को ज्ञानकेन्द्र तक ले जाया जा सकता है। इसे ऊर्ध्वगति देना ही साधना का लक्ष्य है। चेतना के ऊर्ध्व-आरोहण की एक निश्चित प्रक्रिया है। उसके कुछ उपाय हैं । उन उपायों का निर्देश प्रस्तुत पुस्तक में बहुत वैज्ञानिक तरीके से हुआ है। चेतना के ऊवारोहण या जागरण का प्रथम बिन्दु है--विवेक । दूसरा बिन्दु है-- श्वास के आध्यात्मिक मूल्य को समझना, अमूल्य का मूल्यांकन करना । तीसरा बिन्दु है--शरीर-दर्शन । शरीर-दर्शन के तीन फलित हैं(१) अनासक्ति का विकास (२) तनाव का विसर्जन और (३) मन की स्थिरता । चेतना को ऊंचा ले जाने के लिए शरीर को साधना की दृष्टि से देखना है। हमें यह जानना है कि शरीर में ज्ञानकेन्द्र, ज्ञान-प्रन्थियां कहां हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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