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________________ २८ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण चौथे विभाग के छह निबंधों में समन्वय की नई व्याख्या प्रस्तुत हुई है। विषय शोधपरक होने पर भी व्याख्या बहुत सहज, सरल भाषा में हुई है । पांचवा विभाग ‘धर्म के सूत्र' छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण छठा विभाग प्रकीर्णक रूप में है। इसमें अनेक विषय से सम्बन्धित विचारों का प्रस्तुतीकरण हुआ है। 'विघ्नहरण मंगलकरण', 'प्रभु की प्रार्थना कैसे करें', 'होली' तथा 'भारतीय संस्कृति में राम' आदि चौदह निबंध मानव की सोच में एक नयी क्रांति पैदा करते हैं। इस प्रकार ढाई सौ पृष्ठों की यह पुस्तक अनेक विषयों का स्पर्श करती हई चलती है। सभी विषय व्यक्ति को अपने भीतर झांकने की प्रेरणा देते हैं और उसे अपने घर को देखने, संवारने और निरंतर उसमें रह सकने का सामर्थ्य देते हैं। एसो पंच णमोक्कारो नमस्कार महामंत्र आदि-मंगल के रूप में अनेक आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। यह जैन परम्परा का विशिष्ट मंत्र है। इसके पांच पद हैं, जिनमें अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार किया गया है। यह व्यक्ति-विशेष का नहीं, साधक-अवस्था-विशेष का द्योतक असांप्रदायिक नमस्कार है । संकल्पशक्ति, इच्छाशक्ति और मन की शक्ति को विकसित करने के लिए इस मंत्र की साधना की जाती है। इस मंत्र से होने वाले चमत्कारों की सैंकड़ों घटनाएं लोगों के मुखों से सुनी जाती हैं। इस महामंत्र पर विशाल साहित्य प्रकाश में आया है। लेखक इसके ऐतिहासिक महत्त्व का उल्लेख करते हुए प्रस्तुति में कहते हैं -- 'अनेक आचार्यों ने इस महामंत्र पर अनेक कल्पग्रन्थ और मंत्रशास्त्रीय ग्रन्थ लिखे हैं। ग्रहशांति. विघ्नशांति, वज्रपंजर आदि विभिन्न दिशाओं में इस महामंत्र का प्रयोग हुआ है। जैन परंपरा में नमस्कार महामंत्र का जितना व्यापक प्रयोग हुआ है उतना अन्य किसी भी मंत्र का नहीं हुआ है। नमस्कार महामंत्र के जैसे जप के प्रयोग मिलते हैं, वैसे ही इसके ध्यान के प्रयोग भी उपलब्ध होते हैं । जैन परंपरा में 'नवपद ध्यान' बहुत प्रसिद्ध है। चैतन्य केन्द्रों पर भी इस मंत्र का ध्यान किया जाता है । पुरुषाकार ध्यान करने की पद्धति भी रही है ।' बीकानेर के प्रेक्षाध्यान शिविर में नमस्कार महामंत्र के विभिन्न प्रयोग कराए गए और वे बहुत सफल रहे। प्रत्येक पद की चतुष्पाद ध्यान-पद्धति में नए-नए अनुभव हुए और अनेक साधकों ने स्वभाव परिवर्तन का इसे माध्यम माना । नमस्कार महामंत्र का उपयोग आत्मानुभूति के लिए बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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