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प्रेक्षा साहित्य
और कुछ नियति की उत्तरदायी मानते हैं ।
हमारी दो चेतनाएं हैं। एक है औदयिकभाव से बंधी हुई चेतना और दूसरी है क्षायोपशमिकभाव से बंधी हुई चेतना । इन्हें हम 'कंडीशन्ड माइंड' और 'सुपर माइंड' वह मकते हैं । वास्तव में ये दोनों तथा काल, स्वभाव, नियति आदि तत्त्व प्रत्येक आचरण और व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं । हम इस उत्तरदायित्व को किसी एक तत्त्व पर नहीं लाद सकते । सभी का समवाय ही उत्तरदायित्व ओढ़े हुए है ।
प्रस्तुत कृति में हम स्वतंत्र हैं या परतंत्र,' 'उत्तरदायी कौन ?' 'परिवर्तन मस्तिष्क का' तथा 'अध्यात्म और विज्ञान' आदि १७ प्रवचनों में उत्तरदायी घटकों की चर्चा है । उत्तरदायित्व के विषय में विभिन्न पाश्चात्य एवं भारतीय दार्शनिकों के विश्वारों का सहज-सरल भाषा में इसमें प्रस्तुती - करण है । व्यक्तित्व रूपान्तरण के इच्छुक पाठकों के लिए यह कृति दीपशिखा का कार्य कर सकेगी ।
अपने घर में
'अपने घर में' पुस्तक का यह नाम जितना रोचक, आकर्षक और नवीन है, तथ्यों का प्रतिपादन भी उतनी ही सरस और नवीन शैली में हुआ है । प्रस्तुति में लेखक कहते हैं- 'प्रस्तुत कृति में अस्तित्व और जगत् को समझने का एक दृष्टिकोण प्रस्तुत है । उसका मनन कर आदमी अपने भीतर झांक सकता है और 'अपने घर' में रहने का अधिकार पा सकता है । अपने घर में रहने पर ही मिलती है परम शांति और परम आनन्द ।'
ग्रंथ छह विभागों में विभक्त है—
१. भाव - चिकित्सा
२. पराविद्या
३. जैन धर्म - दर्शन
४. समन्वय का स्वर
५. धर्म के सूत्र ६. विचार का अनुबंध
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प्रथम विभाग 'भाव - चिकित्सा' में संस्कार - जनित रुग्णता को दूर करने के लिए अमोघ सूत्रों का विवेचन है । 'कर सकता है पर करता नहीं,' तथा 'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया' आदि छह निबंधों में संस्कारों की जटिलता का विवेचन और उनके शोधन के उपाय निर्दिष्ट हैं ।
दूसरे विभाग के पांच निबंधों में पराविद्या से सम्बन्धित विषयोंस्वप्न, ध्वनि, अतीन्द्रिय ज्ञान आदि पर विश्लेषण प्राप्त है ।
तीसरे विभाग में जैन दर्शन के मौलिक तत्त्वों का विवेचन हुआ है । दसों प्रवचन जैन दर्शन और श्रावक के आचार को नए परिवेश में प्रस्तुत करते हैं ।
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