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________________ २४ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण इसमें तीन अध्याय हैं१. ज्ञात-अज्ञात, २. मन की सीमा, ३. चेतना के आयाम । इन तीन अध्यायों में तेवीस निबंध हैं। इन सब प्रवचनों में अवचेतन और चेतन मन से सम्पर्क साधने के कुछ यौगिक एवं व्यावहारिक सूत्रों का उल्लेख हुआ है । ये साधक के पथ में आलोक-सूत्र बन सकते हैं। . इन निबंधों का अनुशीलन मन के गूढ़ रहस्यों को समझने तथा उसके अद्भुत सामर्थ्य को प्राप्त करने में सहयोगी बन सकता है । अप्पाणं सरणं गच्छामि हर व्यक्ति अपने से अधिक शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति की शरण में जाकर त्राण पाना चाहता है। प्राय: सभी धर्म के महापुरुषों ने भिन्न-भिन्न शरणों का निर्देश किया है, किंतु युवाचार्य महाप्रज्ञ 'अप्पाणं सरणं गच्छामि' अर्थात् आत्मा की शरण स्वीकार करने की बात कहते हैं। यह आत्म-विश्वास को वृद्धिंगत करने का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। आत्मा की शरण समाधिस्थ और द्रष्टा व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है। ___ मानसिक समस्याओं और तनावों के इस युग में समाधि का अनुभव हर व्यक्ति चाहता है। मनुष्य के सामने अनेक समस्याएं हैं, दुःख हैं । आत्मस्थ बनकर समाधि का अनुभव करना समस्याओं का स्थायी समाधान है। इसी बात को युवाचार्यश्री अपनी भाषा में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-'प्रस्तुत पुस्तक में समाधि और उसकी साधना का निर्देश है । साधना का एक मुख्य सूत्र है- प्रेक्षा । यह समाधि का आदि-बिन्दु भी है और चरम-बिंदु भी। आदि-बिंदु में चेतना की निर्मलता का दर्शन होता है और चरम-बिंदु में चेतना सभी प्रभावों से मुक्त हो जाती है । मध्य-बिंदु में वह प्रभावित और अप्रभावित ---दोनों अवस्थाओं में रहती है ।। इस बृहत्काय ग्रन्थ में चार शिविरों के प्रवचनों का संकलन चार अध्यायों में विभक्त है १. समाधि की दिशा में प्रस्थान । २. समाधि की खोज। ३. समाधि की निष्पत्ति । ४. अप्पाणं सरणं गच्छामि । इनके अन्तर्गत ३५ निबंध हैं जिनमें समाधि को अनेक आयामों में प्रस्तुत किया गया है। समाधि के मूल सूत्र, समाधि के सोपान, संयम और समाधि, समाधि और प्रज्ञा, अपनी शुद्धि, चैतन्य का अनुभव आदि शीर्षक समाधि के हार्द और उसकी निष्पत्ति को प्रस्तुत करते हैं। जैन परंपरा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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