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२३.
प्रेक्षा साहित्य
व्यक्ति दस प्रतिशत अर्हताओं को भी काम में ले लेता है, वह विश्व का महान् बुद्धिमान् व्यक्ति बन जाता है । पर सारे लोग इतना भी नहीं कर पाते ।
प्रस्तुत पुस्तक में अर्ह बनने या अर्हता को अभिव्यक्ति देने के कुछ उपाय निर्दिष्ट हैं । जो व्यक्ति इन उपायों को प्रयोग में लाता है, वह अर्हता को प्राप्त कर 'अर्हम्' या अर्हत्' बन जाता है ।
आत्म-साक्षात्कार की जिनमें तीव्र अभीप्सा है, उनके लिए यह कृति एक अनिवार्य साधन है । इसमें सोलह निबंध हैं, जिनमें विविध प्रकार से चेतना के उन्नयन के उपाय बताए गये हैं । इनमें मुख्य हैं—– 'अपने आपको जानें', 'विकल्प की खोज', 'कार्यसिद्धि के प्रयोग', 'उपाय और परिणाम', 'मन का स्वरूप', 'चित्त और मन', 'चिन्तन और निर्णय', 'चिन्तन और वैराग्य', आदि-आदि ।
अवचेतन मन से सम्पर्क
चित्त और मन दार्शनिक तथा मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में बहुचर्चित विषय रहे हैं । प्रस्तुति में स्वयं युवाचार्य श्री इसका पृथक्करण करते हुए कहते हैं'मन स्वयं चेतन नहीं है पर वह चेतन का पूर्ण प्रतिनिधित्व कर रहा है । चित्त और मन की विभाजन रेखा सष्ट है । चित्त चैतन्यधर्मा है और मन चैतन्यधर्मा नहीं है ।'
वर्तमान समस्या के संदर्भ में अनेक ज्वलंत प्रश्न उभर कर सामने आ रहे हैं -
१. मानसिक अशान्ति क्यों ?
२. हिंसा की उग्रता क्यों ?
३. नैतिक चेतना का अभाव क्यों ?
इनको समाहित करना युग की अनिवार्यता है । लेखक की दृष्टि से इन्हें समाहित करने के लिए बौद्धिक और भावनात्मक विकास का संतुलन, विधायक दृष्टिकोण और संबंधों का नया क्षितिज खोजना होगा और अवचेतन और अचेतन मन से संबंध स्थापित करना होगा ।
अचेतन मन में कृष्णपक्ष भी है और शुक्लपक्ष भी है । एक को सुलाना है और एक को जगाना है । अचेतन मन का कृष्णपक्ष है - आवेश, कषाय आदि का उदय और शुक्लपक्ष है -- कल्याण-भाव, हित- चिन्तन, परोपकार, आत्मसाक्षात्कार की भावना । हमें शुक्लपक्ष वाले भाग को जगाना है और कृष्णपक्ष वाले भाग को सुलाए रखना है । शुक्लपक्ष जागते ही अवचेतन मन से सम्पर्क हो जाता है ।
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