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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
प्रभावित करते हैं । परमाणु के चार गुणों में एक है रंग । यह चित्त को सबसे अधिक प्रभावित करता है। हमारा चित्त नाड़ी-संस्थान में क्रियाशील रहता है और उसका मुख्य केन्द्र है मस्तिष्क । वह अन्तर्जगत् में सूक्ष्म चेतना से जुड़ा हुआ है और बाह्य जगत् में अपने प्रतिबिम्बभूत आभामंडल से । जैसा चित्त वैसा ही आभामंडल और जैसा आभामंडल वैसा ही चित्त, यह समीकरण बनता है। चित्त को देखकर आभामंडल और आभामंडल को देखकर चित्त को जाना जा सकता है।
__ हमारे शरीर के चारों ओर ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं रश्मियों की सूक्ष्म तरंगों का जाल जैसा वलय बना हुआ होता है। वह भावधारा के साथ-साथ बदलता रहता है। वह कभी एकरूप नहीं रहता। निर्मलता, मलिनता, संकोच, विकोच --- ये सारी अवस्थाएं उसमें बनती रहती हैं। इनके आधार पर शरीर और मन के स्तर पर घटित होने वाली घटनाएं जानी जा सकती हैं। स्थूल शरीर की घटनाएं पहले सूक्ष्म शरीर में घटित होती हैं। उनका प्रतिविम्ब आभामंडल पर पड़ता है । इसके अध्ययन से रोग और मृत्यु, स्वास्थ्य और बीमारी की जानकारी की जा सकती है।
आभामंडल भावधारा या लेश्या का प्रतिबोधक है। लेश्या ध्यान (कलर मेडिटेशन) के द्वारा आभामंडल के परिवर्तन से व्यक्तित्व और स्वभाव का रूपान्तरण स्वतः हो जाता है। आभामंडल को तेजस्वी और सशक्त बनाया जा सकता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में आभामंडल के विषय में विभिन्न जानकारियां और उसको देख सकने के प्रयोग निर्दिष्ट हैं। इसके अठारह निबंधों में रंगों का वैज्ञानिक विश्लेषण तथा उनके द्वारा होने वाले अद्भुत परिवर्तनों का विवेचन
परिशिष्ट में रंगों के बारे में विभिन्न महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी हैं तथा नैतन्य-केन्द्रों (यौगिक चक्रों) के साथ उनके सम्बन्ध को भी बताया है ।
अहम्
। प्रस्तुत कृति का यह शीर्षक शक्तियों को बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण मंत्र है। अर्हता सब में होती है, पर अर्हता की अभिव्यक्ति सबमें नहीं होती। 'अयोग्य: पुरुषो नास्ति'-कोई भी पुरुष सर्वथा योग्यता-शून्य नहीं होता। जो अपनी शक्तियों को अभिव्यक्ति दे पाता है, वह अर्हता को प्राप्त कर लेता है।
आज की सद्यस्क आवश्यकता है कि हम अपनी अर्हताओं का भान करें, उन्हें जानें और फिर उनके प्रयोग की बात सोचें । शत-प्रतिशत अर्हताओं का उपयोग हो नहीं सकता, क्योंकि आदमी के पुरुषार्थ की सीमा है। जो
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