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प्रेक्षा साहित्य
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विचार-मंथन हुआ, वह इस पुस्तक में गुंफित है । इसमें यह बताया गया है कि व्यक्ति समूह के बीच में रहता हुआ भी अपने अकेलेपन का अनुभव कैसे करे और समूह की अस्मिता की स्वीकृति व्यक्तित्व की अस्वीकृति से जन्म न ले।
लेखक की दृष्टि में 'मनोबल की कमी व्यक्ति को समूह में अकेला बना देती है, असहाय बना देती है। जिसका मनोबल मजबूत होता है, वह अकेले में भी समूह जैसा अनुभव करता है। भय के संदर्भ में अकेलापन वांछनीय नहीं है। वह वांछनीय है समुदाय के संदर्भ में ।' प्रस्तुत कृति में इसी के विस्तार का विचार-मंथन प्राप्त है।
सम्पूर्ण पुस्तक तीन भागों में विभक्त है१. अध्यात्म की पगडंडियां २. मनोबल के सूत्र ३. ध्यान के सोपान
प्रथम खंड में जागरूकता, मानसिक संतुलन, संकल्प-शक्ति का विकास तथा व्यसन-मुक्ति आदि १० विषयों की चर्चा है। दूसरे खंड --'मनोबल के सूत्र' में · अज्ञात द्वीप की खोज' 'एकला चलो रे,' 'प्राण ऊर्जा का संवर्धन आदि दस प्रवचनों का संकलन है तथा तीसरे खंड में 'हम श्वास लेना सीखें' 'आध्यात्मिक स्वास्थ्य', 'सहिष्णुता के प्रयोग' आदि आठ प्रवचनों का समाकलन
इस प्रकार यह कृति विभिन्न विषयों के माध्यम से व्यक्ति को अकेलेपन की सैद्धांतिक और प्रायोगिक विधियों से अवगत कराती है ।
निष्कर्ष की भाषा में समूह में रहकर भी अकेला रहना और अकेला रहकर भी समूह की अयथार्थता का अनुभव नहीं करना, यही है 'एकला चलो रे' का प्रतिपाद्य ।
आभामंडल
शरीर, मन और चित्त-तीनों का परस्पर गहरा संबंध है। शरीर पौद्गलिक परमाणुओं की अद्भुत संरचना है । मन उससे भी सूक्ष्म परमाणुसंरचना है । चित्त चेतना का एक स्तर है जो इस शरीर और मन के साथ कार्य करता है । चित्त अपोद्गलिक है। शरीर और मन पौद्गलिक हैं । पुद्गल वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त होता है। कोई भी परमाणु इनसे वियुक्त नहीं होता।
यद्यपि शरीर और मन पौद्गलिक हैं और चित्त अपौद्गलिक है, फिर भी तीनों सापेक्षता के सूत्र में बंधे होने के कारण परस्पर एक दूसरे को
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