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कसे सोचें ?
हर व्यक्ति सोचता है, पर कैसे सोचना चाहिए यह कम व्यक्ति ही जानते हैं । जिसने सही सोचना जाना है, उसका व्यक्तित्व निखरा है और सबके लिए अनुकरणीय बना है। किसी का चिंतन चिंता में परिणत होकर तनाव भी पैदा कर सकता है और किसी का चिंतन दुःख की स्थिति में सुख की सृष्टि भी कर सकता है। इसलिए चिंतन सफलता और असफलता का मुख्य घटक है । अचितन की स्थिति तक पहुंचना है, किंतु इससे पूर्व सही चिंतन कैसे करें, यह जानना आवश्यक है।
चिंतन के दो प्रकार हैं-विधायक या रचनात्मक तथा निषेधात्मक या ध्वंसात्मक । कैसे सोचें-यह सोचने की दिशा को परिष्कृत कर मनुष्य को रचनात्मक चिंतन में प्रविष्ट करता है। विधायक चिंतन से मन ही नहीं शरीर और भाव भी स्वस्थ रहते हैं और निषेधात्मक चिंतन से मन ही नहीं, शरीर और भाव भी रोग ग्रस्त हो जाते हैं ।
सम्पूर्ण पुस्तक तीन खंडों में विभक्त है --- १. कैसे सोचें ? २. हृदय परिवर्तन : प्रक्रिया और आधार ३. भय-मुक्ति।
प्रथम खंड के प्रवचनों में स्वस्थ चितन करने की प्रक्रिया के सूत्र निर्दिष्ट हैं। इसमें चिंतन प्रतिक्रिया-मुक्त, संदेहरहित, तनावमुक्त, सापेक्ष तथा सहज कैसे बनाया जाए, इसका विवेचन है।
__दूसका खण्ड हृदय परिवर्तन से सम्बन्धित है । जो कार्य कानून और शस्त्रास्त्रों की शक्ति नहीं करा सकती वह हृदय परिवर्तन द्वारा हो सकता है। किन्तु हृदय-परिवर्तन भी चिंतन के रूपांतरण से होता है। प्रस्तुत खण्ड मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके १० निबंधों में हृदय-परिवर्तन के विशिष्ट प्रयोगों का उल्लेख है।
तीसरा खण्ड लघु पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । भय व्यक्ति के चिंतन को विकृत कर देता है, शरीर के प्रावों को बदल देता है। अतः भय-मुक्त कैसे बनें यह विशद विवेचन तृतीय खण्ड के पांच निबंधों में हुआ है। इस प्रकार यह ग्रंथ सोच और चितन में एक नई स्फुरणा लाने वाला महत्त्वपूर्ण वैचारिक ग्रन्थ है।
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