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________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण जगाकर उच्चता की ओर प्रस्थान करने की अद्भुत क्षमता रखता है। उनका चिंतन आज की प्रगतिशील विचार-धारा से ओतप्रोत है, किन्तु इसमें भारतीय संस्कृति की विरासत तथा पुराने मूल्यों के स्थापना की बात सर्वत्र मिलती है। जीवन से दूर हटकर किसी भी बात को उन्होंने अपने साहित्य में स्थान नहीं दिया। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार साहित्य जीवन की व्याख्या है, यह वाक्य उनके साहित्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इसीलिए हर जीवित व्यक्ति को उनका साहित्य उद्वेलित और प्रभावित करता है। उन्होंने साहित्य में ऐसे चिरंतन सत्यों को उकेरा है जिसके समक्ष देशकाल का आवरण किसी भी प्रकार का व्यवधान उपस्थित करने में अक्षम और असफल रहा है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी कहते हैं, जो वाग्जाल साहित्य मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, हृदय को परदुःखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है। इस दृष्टि से युवाचार्यश्री का साहित्य जहां एक ओर आत्मोत्थान की प्रेरणा देता है, वहीं दूसरी ओर पुरुषार्थी बनकर शक्तिशाली बनने का आह्वान करता है। करुणा, संवेदना और अहिंसा की बात तो उनके हर विचार के साथ जुड़ी हुई है। आजकल चिकित्सक व्याधिग्रस्त व्यक्तियों को साहित्य न पढ़ने का परामर्श देते हैं क्योंकि उसमें कुंठा, विकृति, संत्रास आदि के स्वर ही मिलते हैं, प्रसन्न अभिव्यक्ति के नहीं। इस दृष्टि से युवाचार्य का साहित्य नूतन प्रभावोत्पादक है। क्योंकि इसमें समग्र जीवन रूपान्तरण की अभिव्यक्ति है। निष्कर्षतः उनके साहित्य में कोमलता, ग्राह्यता, मौलिकता, अनुकूलता, प्रेरणा आदि मौलिक गुण हैं। हमने उनके साहित्य को सात विभागों में विभक्त किया है - (१) प्रेक्षा साहित्य (२) व्यक्ति और विचार (३) दर्शन और सिद्धांत (४) विविधा (५) गद्य-पद्य काव्य (६) कथा साहित्य (७) संस्कृत साहित्य । इन विभागों के अन्तर्गत उल्लिखित पुस्तकों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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