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प्रस्तुति
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तलस्पर्शी हो, मार्मिक हो तथा बोधगम्य हो। कवि का सबसे बड़ा गुण होता है-कल्पनाशीलता। भावों की उपज के बिना कविता नहीं लिखी जा सकती। कल्पना द्वारा सामान्य विषय का वर्णन भी अद्भुत, रोमांचक और आनंददायक बन जाता है। दार्शनिक होने के कारण कल्पनाशीलता तो उनका नैसर्गिक गुण है और इसी कारण सामान्य कल्पनाओं से हटकर नई कल्पनाएं भी उनके काव्य में मिलती हैं। वे असलियत एवं वास्तविकता से जुड़ी हुई हैं। जीवन के चरमदर्शन को उन्होंने कितने सरल शब्दों में व्यावहारिक उदाहरणों से व्यक्त किया हैघोडा खडा रहा
सौरभ चल बसा। आरोही उड चला। बाती धरी रही। पिंजरा पडा रहा
ज्योतिपुंज ज्योतिपुंज से जा मिला । पंछी उड चला। फूल लगा रहा
अपने आराध्य गुरु की अर्चना भी उन्होंने केवल प्रशस्ति रूप से नहीं की है, अपितु वास्तविक एवं यथार्थ शब्दों में की है। इसमें काव्य के शब्द सामान्य, पर भावों की गरिमा अद्भुत है। एक स्थान पर वे प्रभु की अर्चा इन शब्दों में करते हैं
मेरे देव ! मैं तुम्हारी पूजा इसलिए नहीं करता कि तुम बहुत बड़े हो किन्तु इसलिए करता हूं कि तुम मुझ तक पहुंचते हो।
भगवान के कर्तव्य पर व्यंग्य करने वाली यह कविता दार्शनिक होने पर भी कितनी वेधक है--
मेरे भगवान् ! हजारों वर्ष बीत गए हां और ना के बीच में झूलता तुम्हारा अस्तित्व आज भी प्रश्न चिह्न बना हुआ है। दीनता और दरिद्रता के सागर में डूबी हुई तुम्हारी भक्तमंडली को देख क्या मैं कह सकता हूं कि तुम दयालु हो ? तुम्हारी सृष्टि की दुर्व्यवस्था देख मैं नहीं कह सकता कि तुम कुशल कारीगर हो ।
इस प्रकार विमल चित्त से उद्भूत उनका काव्य सत्यं, शिवं, सुंदर का विशद चित्र हमारे सामने प्रस्तुत करता है जो मानव मन में उदात्त भाव
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