SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण कोशिश की जाए तो उनका मिथ्या रूप ही चित्रित हो जाता है । युवाचार्यश्री ने भाव के अनुसार उचित भाषा एवं शब्दों का प्रयोग अपने काव्य में किया है । गहन बात को संक्षेप में कह देना युवाचार्यश्री की विशेषता है । आज के आतंकवादी एवं हिंसक शक्तियों पर एवं करारा व्यंग्य कसा है उन्होंने कितना संक्षिप्त कितना समझदार है तलवार बनाने वाला और कितना मूर्ख है तलवार चलाने वाला बनाने वाले के लिए तलवार रोटी है चलाने वाले के लिए तलवार कसौटी है ॥ उनके काव्य में अलंकार और रसों का प्रयोग भी प्रयत्नजन्य नहीं, किन्तु सहज रूप में कहीं कहीं हुआ है । 'गूंजते स्वर बहरे कान' की भूमिका में अपने काव्य की समीक्षा वे इन शब्दों में करते हैं- न मैंने शब्दों का जाल रचा है और न तुकों की अपेक्षा रखी है, उसे सहज गति से बहने दिया है । हृदय की अनुभूति शब्दों में ही ढक जाए, वह हजारों हृदयों का स्पर्श ही न कर पाए, वैसी कोई भी धारा मुझे अपना नहीं बना सकी, इसलिए ये मेरी कविताएं किसी भी धारा से घिरी हुई नहीं हैं । उदाहरण के लिए इन दो कविताओं को देखा जा सकता है ( १ ) जल चाहता है मुझे कोई न बांधे अन्न चाहता है मुझे कोई न रांधे पवन चाहता है मुझे कोई न रोके मन चाहता है मुझे कोई न टोके पर जल प्रकाश देता है बंधकर अन्न स्वाद देता है रंधकर पवन तारता है रुककर मन उबारता है झुककर । (२) अग्नि जलती है पर इसलिए नहीं कि पतंगा उसमें गिरकर जल जाए । वह जलती है इसलिए कि उसे देख हर कोई संभल जाए उन्होंने अपने गद्य साहित्य की भांति काव्य में भी युग निर्माण की सूक्ष्म चेतना को अभिव्यक्ति दी है । इसीलिए उसमें सत्यं शिवं, सुंदरं का समावेश है । उन्होंने उन्हीं विषयों को अपने काव्य का माध्यम बनाया है जो प्रेरक हो, 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy